Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 16
________________ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर--जीवका विभाव औपाधिक (नमित्तिक) है, जीव विभावसे स्वय परिणमता है वहाँ कर्मोदय निमित्त अवश्य है, अन्यथा विभावकी विभिन्नता भी न बनेगी। प्रश्न २२-जैसे जीवके विभावमे कर्मोदय निमित्त है इसी प्रकार ईश्वरको निमित्त क्यो न मान लिया जावे ? ___ उत्तर-ईश्वर क्या सचेष्ट होकर निमित्त होगा या अचेष्ट रहकर ? सचेष्ट होकर निमित्त माननेमे तो ईश्वरको रागी द्वेषी होनेका भी प्रश्न पावेगा फिर वह ईश्वर ही कहाँ रहा तथा एक व्यापी बनकर निमित्त नही हो सकता। अनेक प्रव्यापी होकर निमित्त मानने पर ठीक है । जगतमे ये जितने सचेष्ट जीव दिख रहे है उनमे कोई किसीके रागद्वेषादिमे निमित्त हो ही रहे है, परन्तु इनकी ईश्वरता व्यक्त नहीं है। प्रश्न २३-ईश्वर अचेष्ट होकर जीवकी रचनामे निमित्त माना जावे तो क्या हानि है ? उत्तर-अचेष्ट होकर यदि ईश्वर निमित्त हो सकता है तो हम लोगोके अचेष्ट बननेके लिए अचेष्ट बननेसे पहिले तदनुकूल शुभ विकल्पोमे ही निमित्तमात्र हो सकता है, किन्तु हमारे सब भावोमे निमित्त नहीं बन सकता, परन्तु उसका यथार्थस्वरूप अवश्य समझ लेना चाहिये । प्रश्न २४-क्या जीव कर्ता ही है ? उत्तर-पर्यायदृष्टिमे जीव कर्ता है, क्योकि पर्याय परिणतिके बिना नही होती और परिणतिक्रिया जीवको स्वयंकी होती है। परन्तु परमशुद्ध निश्चयनय अथवा शुद्धद्रव्यदृष्टिसे. जीव प्रकर्ता है, क्योकि यह प्राशय अनादि अनत सामान्य स्वभावको स्वीकार करता है ।पधा. प्रश्न २५-जीव कुछ नहीं करता है, यही मान लेनेमे क्या हानि है ?- 1 . उत्तर-प्रथम तो यह सत्स्वरूपके विरुद्ध है अतः अर्थक्रिया न करने वाला असत् हो) जावेगा । दूसरी बात यह है कि जीव कुछ नहीं करता है तो मोक्षका यत्न ही किसलिये और कैसे होगा। प्रश्न २६-आत्माको अपने देहके बराबर बताया है, यदि बट बीजके समान सूक्ष्म (छोटा) माना जाये तो क्या क्षति है ? उत्तर-आत्मा यदि अतीव छोटा है तो भी समस्त शरीरके बराबर प्रदेशोमे एक ही समय सुख दुःखका संवेदन होता है, वह न होकर एक देशमे सवेदन होना चाहिये । परन्तु . ऐसा होता नही है। प्रश्न २७-तब फिर आत्माको सर्वव्यापी मान लेना चाहिये ? उत्तर-मात्मा देहसे बाहर नहीं है, क्योकि अन्यत्र सवेदनका अनुभव नहीं होता। हाँ, समुद्धातमें अवश्य कुछ समयको देहमे रहता हुमा भी देहसे बाहर जाता है, सो उस समय वहाँ , भी सारे प्रदेशोमे सवेदन होता है ।

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