Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 15
________________ गाथा २ प्रश्न १४-जीव अशुद्धनिश्चयनयसे कैसा है ? उत्तर-औदयिक भाव व क्षायोपशमिक जो कि प्रात्माके स्वभावकी दृष्टिमे विभाव है उनसे सहित होनेसे जीव मूर्तिक है। यहाँ इन भावोमे स्पर्श रस गध वर्ण नही समझना, किन्तु ये भाव क्षायिक भावकी अपेक्षा स्थूल है अतः मूर्त है व इनके सम्बन्धसे आत्मा भी मूर्त कहलाया, ऐसा जानना। प्रश्न १५-शुद्धनिश्चयनयसे जीव कैसा है ? उत्तर-शुद्धनिश्चयनयसे जीव अमूर्तिक ही है, क्योकि प्रात्माका स्वभाव ही रूप, रस गध, स्पर्शसे सर्वदा रहित एक चैतन्यस्वभाव है । प्रश्न १६-अमूर्त विशेषण देनेका फल क्या है ? उत्तर-जो सिद्धान्त पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुसे जीवको उत्पन्न होना मानते है उनके मतमे मूर्तिक सिद्ध होता है तथा जो प्रकृतिसे मूर्त मानते है उनका निराकरण हो जाता है । जीव वास्तवमे अमूर्त ही है। प्रश्न १७-अमूर्त शब्दका अर्थ इतना ही किया जाय कि जो-मूर्त नही सो अमूर्त, तो क्या हानि है ? उत्तर-इस अर्थमे सद्भावका भाव नही आया ! जीव मूर्त न होकर भी वास्तवमे अमूर्त असख्यातप्रदेशी है। प्रश्न १८-जीव कर्ता किन-किन दृष्टियोसे कहा है ? ___ उत्तर-जीव उपचारसे तो कर्म, नोकर्म (शरीर) का कर्ता है और व्यवहारनयसे अपनी पर्यायका कर्ता है जिसमे कि पशुद्धनिश्चयनय रूप व्यवहारसे शुभ अशुभ कर्मका कर्ता है और शुद्धनिश्चयनयरूप व्यवहारसे अनंतज्ञान आदि शुद्धभावका कर्ता है। प्रश्न १६ –परमशुद्ध निश्चयनयसे जीव किसका कर्ता है ? उत्तर---परमशुद्धनिश्चयनयसे जीव प्रकर्ता है, क्योकि यह नय सामान्य स्वभावको ग्रहण करता है वह अनादि अनत एक स्वरूप है । प्रश्न २०-कर्ता विशेषणसे किस विशेषताकी सिद्धि होती है ? - उत्तर-प्रत्येक द्रव्य अपना परिणमन स्वय करता है - इस न्यायसे जीव भी अपने कार्योंका कर्ता स्वय है, अन्य कोई प्रभु या कर्म आदि जीवके विभावोको नही करते हैं यह सिद्ध होता है तथा जो सिद्धान्त मानता है कि जीव कुछ नही करता, प्रकृति ही करती है उस सिद्धान्तका निराकरण हुआ। . प्रश्न २१-जीव स्वय विभाव करता है, कर्म विभाव नहीं करता, ऐसा माननेपर विभाव जीवका स्वभाव हो जायेगा ?

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