Book Title: Dravyasangraha ki Prashnottari Tika
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न ६-उक्त तीनो भावो में से किस भावपर दृष्टि देना लाभकारी है ? उत्तर-इनमे से परमशुद्धनय (जिसे कि शुद्धनय शब्दसे कहा है) के विषयभूत शुद्ध चैतन्यपर दृष्टि देना आवश्यक है, क्योकि अध्रव और विकारी पर्यायपर दृष्टि देनेसे निविकल्पकता नहीं आती, किन्तु ध्रुव और अनादि अनत अविकारी स्वभावपर दृष्टि देनेसे निर्विकल्पकताका प्रवाह सचरित होता है। प्रश्न ७-उवयोगमभो शब्दका अर्थ कितने प्रकारसे है ? उत्तर-यहाँ उपयोगसे अर्थ चैतन्यके परिणामोंसे है, अतः पर्यायप्ररूपक यह शब्द है, अतएव यहीं परमशुद्धनिश्चयनयका प्रकार तो नहीं है, शेष दो प्रकार निश्चयनयके हैं११) प्रशुद्ध निश्चयनय, (२) शुद्ध निश्चयनय । प्रश्न -अशुद्धनिश्चयनयसे जीव कसे उपयोग वाला है ? उत्तर--अशुद्ध निश्चयनयसे यह जीव क्षायोपशमिक ज्ञानोपयोग और क्षायोपशमिक दर्शनोपयोग वाला है। प्रश्न :-जीवको प्रौदयिक अज्ञानके उपयोग वाला यहाँ क्यो नही कहते ? उत्तर-प्रौदयिक अज्ञान ज्ञानके अभावको कहते हैं । यद्यपि ज्ञानका सर्वथा अभाव... कभी भी नही होता तथापि कम अधिक विकास वाला ज्ञान तो रह हो सकता है, सो जितने अशमे ज्ञान है वह तो क्षायोपशमिक है, वहाँ उपयोग होता है, परन्तु जितने अंश प्रकट नहीं है वह अज्ञान प्रौदयिक है वहा तो उपयोग ही क्या होगा ? अत. अशुद्धनिश्चयनयसे क्षायोप- । शमिक ज्ञान दर्शनोपयोगमय जीव है। प्रश्न १०-युद्ध निश्चयनयसे कैसे उपयोग वाला जीव है ? उत्तर-शुद्ध निश्चयनयसे निर्मल स्वभावपर्याय रूप केवलज्ञान केवलदर्शनके उपयोग वाला है। प्रश्न ११-परमशुद्ध निश्चयनयसे किसी उपयोग वाला क्यो नही बताया ? उत्तर-उपयोग चैतन्यस्वभावको ही पर्याय है, परमशुद्धनिश्चयनय ध्रुव द्रव्य स्वभावकी दृष्टि करता है, वह पर्यायको विषय नही करत, इसलिए उपयोगमय शुद्धनिश्चयनय व अशुद्धनिश्चयनयसे हो कहा गया है। प्रश्न १२--जीवके अमूर्तके सम्बन्धमे जाननेके लिये कितनी दृष्टियाँ है ? उत्तर-तीन दृष्टियां है-१-व्यवहारन्य, २-अशुद्धनिश्चयनय, ३-शुद्धनिश्चयनय । प्रश्न १३-व्यवहारनयसे जीव कसा है ? उत्तर-व्यवहारनयसे जीव मूर्तिक कर्मोके आधीन होनेसे स्पर्श रस गध वर्ण वाले कर्म नोकर्मोसे घिरा है, सो मूर्तिक है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 297