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एस धम्मो सनंतनो
जाता है।
इन मंदबुद्धियों के कारण आस्तिकता डूबी जा रही है। इन मंदबुद्धियों के कारण कोई विचारशील आदमी आस्तिक होने में संकोच करता है, डरता है। मंदिर जाने में दस बार सोचता है कि जाना, कि नहीं जाना! क्योंकि वहां जो जमात है, उस जमात के साथ बैठना भी अपमानजनक मालूम पड़ता है।
दुनिया बढ़ती जाती है, शास्त्र तो मुर्दा होते हैं, बढ़ नहीं सकते हैं। बार-बार चाहिए कोई, जो शास्त्रों को फिर पुनरुज्जीवित करे। फिर खींचकर समसामयिक बना दे। जब शास्त्र समसामयिक हो जाता है, तो विचारशील आदमी को समझ में आता है। वही मैं कर रहा हूं।
कहानी से मुझे लेना-देना नहीं है। उसमें से कुछ छूट जाए, मुझे फिकर नहीं है। उसमें कुछ नया जोड़ना पड़े, फिकर नहीं है। उसकी आत्मा फिर से प्रज्वलित हो जाए, फिर रोशन हो जाए। __ और मैं तुम से कह दूं कि मैं चश्मदीद गवाह हूं। इसलिए अगर शास्त्र में और मुझ में तुम्हें कभी भी ऐसा लगे कि कुछ भेद है, तो शास्त्र में तत्काल सुधार कर लेना। उसका मतलब शास्त्र पीछे पड़ गया। __जिस ढंग से मैंने कहानी कही, बुद्ध अगर पैदा हों आज, तो इसी ढंग से कहेंगे। हां, बुद्ध-पंडित नहीं कह सकता इस ढंग से। बुद्ध-पंडित तो उसी ढंग से कहेगा, जैसा बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले कही थी। वह लकीर का फकीर है। मैं कोई लकीर का फकीर नहीं हूं। मैं फकीर हूं, लकीरों को अपने पीछे चलाता हूं। लकीरों को आगे नहीं चलने देता। मैं उनके पीछे नहीं चलता। लकीरें मेरी मालिक नहीं हैं। मैं उनका मालिक हूं। ___मैं जो कहता हूं, उसका मालिक हूं। मैं कहता ही तब हूं, जब मुझे दिखायी पड़ता है कि ऐसा है। अन्यथा नहीं कहता। ___कहानी में मैंने बहुत बदलाहट की है, बहुत परिष्कार किया है। खूब निखारा है। तराशा है। उसको मनोवैज्ञानिक अर्थ दिया है-ऐतिहासिक की जगह। __ इतिहास में क्या रखा है? जो कुछ है, मन की ही पर्तों में छिपा है। ऐतिहासिक अर्थ देने का मतलब होता है कि सिर्फ बुद्धिहीनों को समझ में आएगा। सिर्फ बुद्ध राजी होंगे। तो धर्म का पतन होता है इस तरह।
ध्यान रखनाः श्रद्धा का अर्थ तर्क का अभाव नहीं होता। श्रद्धा का अर्थ होता है, तर्कातीत दशा; तर्क के पार निकल गयी दशा। श्रद्धा तर्क से नीची नहीं है। श्रद्धा तर्क से ऊपर है। मगर तर्क जो नहीं कर सकता, वह भी श्रद्धा करता है। और तर्क जिसने खूब किया है, और कर-करके पाया है कि तर्क से कुछ सार नहीं मिलता, उसके जीवन में भी श्रद्धा का जन्म होता है। यही फर्क खयाल में ले लेना।
तुम्हें और मंदिर-मस्जिदों में जो लोग मिलेंगे, वे तर्क से नीचे वाली श्रद्धा से