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एस धम्मो सनंतनो
जंजीरों से निकाल लो, वह फिर जंजीरें बांध लेता है। तुम किसी तरह उसे धक्के देकर कारागृह के बाहर करो, वह दूसरे दरवाजे से भीतर घुस जाता है। आदमी को गुलामी में सुरक्षा मालूम पड़ती है! ___ इसलिए बुद्ध ने तो कहा था कि अब प्रार्थना न हो, ध्यान हो। लेकिन लोगों ने बुद्ध की ही प्रार्थना करनी शुरू कर दी। बुद्ध के मंदिर बने; मूर्तियां बनीं। प्रार्थना चली। लोग बुद्ध की प्रार्थना तो करने लगे, लेकिन बुद्ध के मूल-तत्व से चूक गए।
प्रत्येक द्रष्टा की अपनी प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया में तुमने जरा. भी कुछ जोड़ा-घटाया कि खराब हो जाती है। और हम जोड़ते-घटाते हैं। हम अपने मन को बीच में ले आते हैं। हम अपनी वासनाओं को बीच में ले आते हैं। हम रंग डालते हैं चीजों को हम अपना रंग दे देते हैं।
बुद्ध के धर्म में प्रार्थना की तो कोई जगह नहीं है, लेकिन झुकने की जगह है। इसको खयाल में रखना। और तब बड़ा कठिन हो जाता है बुद्ध को समझना। क्योंकि बुद्ध ने इतनी ऊंची उड़ान ली है कि समझना बहुत कठिन हो जाता है।
बुद्ध कहते हैं : प्रार्थना की तो कोई जरूरत नहीं है, लेकिन झुकने का भाव कीमती है। किसी के सामने मत झुकना, झुक ही जाना। झुकना किसी के सामने गलत है। लेकिन झुकना अपने आप में सही है। क्योंकि जो झुकता है, समर्पित होता है। जो झुकता है, वह मिटता है। जो झुकता है, उसका अहंकार खोता है।
अब यह बड़ा कठिन है। तुम्हें यह समझ में आता है कि अगर मूर्ति हो, परमात्मा हो, तो झुका जा सकता है। कोई झुकने को तो चाहिए! बुद्ध कहते हैं : झुकने को कोई नहीं चाहिए। झुकना शुद्ध होना चाहिए। क्योंकि अगर तुम किसी के सामने झकोगे, तो किसी वासना से झकोगे। तुम अगर किसी के सामने झुकोगे, तो तुम्हारे झुकने में कोई हेतु रहेगा। यह कोई असली झुकना नहीं होगा। __ जब तुम बिना किसी वासना के झुकोगे; सिर्फ झुक जाओगे; झुकने का मजा लोगे; न कोई मांग है, न कोई मांग को पूरी करने वाला है। तुम एक वृक्ष के पास झुके पड़े हो। या जमीन पर सिर रखे पड़े हो; तुम मिट रहे हो, गल रहे हो, तुम विसर्जित हो रहे हो। जो पूरी तरह झुक गया, वह पूरी तरह उठ गया। और जो अकड़ा खड़ा रहा, वह चूकता चला गया है।
ध्यान रखनाः पहाड़ खड़े हैं अकड़े हुए, इसलिए पानी से खाली रह जाते हैं। वर्षा तो उन पर होती है, लेकिन खाली रह जाते हैं। और झीलें, जो खाली हैं, झुकी हैं; गड्ढे हैं; सिर उठाए नहीं खड़े हैं उनमें जल भर जाता है।
परमात्मा तो रोज बरस रहा है। सारा जगत चैतन्य से भरा है। तुम्हीं चैतन्य से भरे नहीं हो; सभी कुछ चैतन्य से भरा है। चेतना का ही सारा जाल है। चेतना प्रतिपल बरस रही है, लेकिन तुम अकड़े खड़े हो। अकड़े खड़े हो, इसलिए खाली रह जाते हो। झुको।
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