Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 361
________________ एस धम्मो सनंतनो बुद्धं शरणं गच्छामि। जिससे पहचान बनी, जिससे नाता जोड़ा, जिससे शिष्यत्व का संबंध बना—उसकी शरण गए। फिर जल्दी ही खयाल में आना शुरू हुआ कि बुद्ध ही थोड़े बुद्ध हैं; कृष्ण भी बुद्ध हैं; महावीर भी बुद्ध हैं; पतंजलि भी बुद्ध हैं; लाओत्सू भी बुद्ध हैं। फिर और सारे बुद्ध दिखायी पड़ने लगे। एक फूल से क्या पहचान हुई, फिर सारे फूलों से पहचान होने लगी। एक नदी का क्या जल पीया, फिर सारे नदियों के जल की समझ आने लगी कि यही जल है। सभी जगह गंगाजल है। तो दूसरी शरण है—संघं शरणं गच्छामि। और तीसरी शरण और बड़ी हो गयी। फिर जब सब बुद्धों को देखा, सब फूलों को देखा, तो उन फूलों के भीतर अनस्यूत धागा दिखायी पड़ने लगा कि इतने बुद्ध हुए, ये सब कैसे बुद्ध हुए ? ये किस कारण बुद्ध हुए? धर्म के कारण। फिर बुद्ध भी गए; बुद्धों का संघ भी गया; फिर धम्मं शरणं गच्छामि-फिर धर्म की शरण आए। और एक दिन वह भी चला जाएगा। फिर सिर्फ झुकना रह जाएगा, शुद्ध झुकना। __सीढ़ियां उतरे; बुद्ध सीढ़ियों जैसे। फिर नदी में गए; नदी बुद्धों के संघ जैसी। फिर नदी में बहे और सागर में पहुंचे; सागर धर्म जैसा। फिर सागर में गले और एक हो गए। फिर झुकना शुद्ध हो गया। फिर असली शरण हाथ लगी। फिर तुम धन्यवाद करोगे-बुद्धों का, धर्म का, बुद्ध का; अनुग्रह मानोगे। अब झुकना शुद्ध हो गया। अब तुमने जान लिया कि मेरे न होने में ही मेरे होने का असली राज है। मेरी शून्यता में ही मेरी पूर्णता है। आज इतना ही। 348

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