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एस धम्मो सनंतनो
तो हैं! ब्रह्मचर्चा रुक जाती है। __कालूरामजी में ब्रह्म बिलकुल मालूम नहीं होते। सबसे कम ब्रह्म जिनमें दिखते हों वह कालूरामजी! मगर और किसी के लिए नहीं रुकती। कालूरामजी की जेब भरी है, तो ब्रह्मचर्चा रुकती है! ___तुम जाकर क्या करोगे; भागकर क्या करोगे? कहां जाओगे? तुम जहां जाओगे काम-धंधा किसी न किसी तरह पैदा होगा। हो ही जाएगा। ___इसलिए कहीं भागने की कोई जरूरत नहीं है। संसार एक अवसर है जागने का। भागो मत—जागो। जहां हो, उसी परिस्थिति में परम संतुष्ट हो जाओ। और उसी परिस्थिति में परमात्मा को तलाशने लगो। ___ सब परिस्थितियां समान हैं खोजी के लिए। सब परिस्थितियां समान हैं, मैं तुमसे कहता हूं। एक बहुत प्रसिद्ध वचन है इजिप्त की एक पुरानी किताब में कि अगर तुम नर्क में हो, तो उसे स्वीकार कर लो; तुम्हारी स्वीकृति के साथ ही नर्क स्वर्ग हो जाएगा। यह बात मुझे समझ में आती है। यह बात गहरी है।
नर्क को जिसने स्वीकार कर लिया, फिर नर्क कैसे रहेगा? अहोभाव से स्वीकार कर लिया; नर्क उसी क्षण स्वर्ग होने लगा। और तुम स्वर्ग में भी रहो; और शिकायत रहे, तो नर्क ही रहेगा।
तुम कहां हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। तुम भीतर से कैसे हो, इससे फर्क पड़ता है। और कम से कम मेरे पास तो ऐसे प्रश्न मत लाओ; क्योंकि मैं संसार-विरोधी नहीं हूं। मैं तुम्हें विमलकीर्ति बनाना चाहता हूं। मैं तुम्हें ऐसे गृहस्थ बनाना चाहता हूं, जो संन्यस्त हैं। मैं संसार और संन्यास की दूरी कम करना चाहता हूं। संन्यास आत्मा बन जाए संसार की, संसार देह रहे; तभी तालमेल बैठता है; तब महासंगीत पैदा होता है।
चौथा प्रश्नः
मैं सदा नए की खोज में लगा रहता हूं। कुछ भी नया हो, तो मुझे भाता है। इसमें कछ भूल तो नहीं है?
भृ ल तो निश्चित है। कुछ नहीं; बड़ी भूल है। क्योंकि यही तो मन के जीने का
ढंग है। मन सदा नए की तलाश करता है। मन नए के लिए खुजलाहट है। पुरानी पत्नी नहीं भाती; नयी पत्नी चाहिए। पुराना मकान नहीं भाता; नया मकान चाहिए। पुराने कपड़े नहीं भाते; नए कपड़े चाहिए। हमेशा नया चाहिए। यही तो मन है, जो दौड़ाता
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