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बोध से मार पर विजय उसका पीछा करता है। स्त्री अगर पुरुष के पीछे चलने लगे, तो पुरुष उससे भागने लगता है।
मनुष्य का मन बड़े द्वंद्व से भरा है ! एक हमेशा पीछा करेगा, और एक हमेशा भागता हुआ रहेगा। ऐसे आकर्षण कायम रहता है। प्रकृति की बड़ी गहन रचना है। जो मिल जाए, उसमें आकर्षण समाप्त हो जाता है। जो न मिले, तो आकर्षण बना रहता है।
स्त्रियों का आकर्षण उसी मात्रा में ज्यादा होगा, जिस मात्रा में उनका पाना कठिन हो। पुरुषों का आकर्षण भी उसी मात्रा में ज्यादा होगा, जिस मात्रा में उन तक पहुंचना करीब-करीब असंभव हो। असंभव से प्रेम कभी मरता नहीं। संभव से प्रेम मर जाता है। क्योंकि जो मिला, उसमें आकर्षण समाप्त हुआ। जो न मिले न मिलेउसमें ही आकर्षण होता है।
संन्यस्त व्यक्ति अक्सर-सदियों से—स्त्रियों का आकर्षण हो गए हैं। इस भिक्षु पर-युवा भिक्षु पर—एक स्त्री मोहित हो गयी।
और संन्यासी पर मोहित हो जाने का एक कारण अन्य भी है। संन्यास में एक तरह का सौंदर्य है, जो संसारी में नहीं हो सकता।
संसार को छोड़कर जो हटता है, उसके संसार को छोड़कर हटने में ही वह विशिष्ट हो गया, असाधारण हो गया। जो ध्यान में लगता है, उसके भीतर एक प्रसाद का जन्म होता है। ___एक तो सौंदर्य देह का है। एक देह से पार सौंदर्य और भी है-आत्मा का सौंदर्य है। और जिसकी आत्मा का सौंदर्य थोड़ा सा भी खिलने लगे, उसकी देह कुरूप भी हो, तो भी कुरूप मालूम नहीं होगी। जैसे बुझा दीया हो, तो तुम्हें दीया दिखायी पड़ता है। फिर जल गया दीया, ज्योतिर्मय हो गया, तो ज्योति दिखायी पड़ने लगती है। फिर दीए को कौन देखता है! फिर दीया सुंदर है या नहीं, यह बात गौण हो जाती है। दीया सुंदर है या नहीं-तब तक बात बड़ी महत्वपूर्ण रहती है, जब तक दीया बुझा हो। क्योंकि दीया ही है, और तो कुछ है ही नहीं। जैसे ही दीया जला, ज्योति का अवतरण हुआ, अब कौन दीए की चिंता करता है?
ऐसी ही घटना संन्यासी को भी घटती है। संसारी के पास तो देह मात्र है; मिट्टी का दीया है; ज्योति अभी जगी नहीं। संन्यासी की ज्योति जगनी शुरू होती है। उस ज्योति के अवतरण पर दीया गौण हो जाता है। महत्वपूर्ण आ गया, तो स्वभावतः जो गैर-महत्वपूर्ण है, वह गौण हो गया। मालिक आ जाए, तो नौकर गौण हो जाता है। मालिक न हो, तो नौकर ही मालिक जैसा मालूम पड़ता है।
संन्यास में एक आकर्षण और भी है इसीलिए। भीतर का आकर्षण है। संन्यासी एक आंतरिक सौंदर्य से दीप्त हो जाता है, एक आभामंडल उसे घेर लेता है।
और ध्यान रहे, जैसा मैं निरंतर तुमसे कहा हूं : मनुष्य वस्तुतः शाश्वत की खोज
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