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धर्म का सार-बांटना
आदमी जैसा है, ईश्वर के वरदान का भी गलत ही उपयोग होगा। तुम्हारे दान की क्या बात है! ___ 'खेतों का दोष घास-पात, इस प्रजा का दोष द्वेष है। इसलिए वीतद्वेष व्यक्तियों को दान देने में महाफल होता है।'
उन्हें देना जो वीतद्वेष हैं, तो तुमने जो दिया है, उसकी शुभ ही शुभ परिणति होगी। ___'खेतों का दोष घास-पात, प्रजा का दोष मोह है। इसलिए वीतमोह व्यक्तियों को दान देने में महाफल होता है।' ___ 'खेतों का दोष घास-पात, प्रजा का दोष इच्छा। इसलिए विगतेच्छ, जो इच्छा के पार हो गए हैं, ऐसे व्यक्तियों को दान देने में महाफल होता है।'
इन वचनों पर विचार करना, चिंतन करना, मनन करना।
तुम्हारा जीवन दान बने, प्रेम बने, निरअहंकार भाव बने। और तुम्हारा जीवन उन दिशाओं में संलग्न हो जाए, उन खेतों में तुम्हारे बीज पड़ें-दान के और प्रेम के–जहां राग के, द्वेष के, इच्छाओं के, घृणाओं के, तृष्णाओं के जहर नहीं हैं। फिर महाफल निश्चित है।
आज इतना ही।
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