Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 339
________________ एस धम्मो सनंतनो बांध उर का तोड़ कर जब बह चली है अश्रुधारा जल भरे ये मेघ काले आज मुझ पर झुक न आएं। चरण मेरे रुक न जाएं। सब तुम पर निर्भर है। रोकना चाहो, तो रुक जाएंगे। चलाना चाहो, तो इस जगत की कोई शक्ति तुम्हारे चरणों को रोक नहीं सकती। सब तुम पर निर्भर है। तुम्हीं रुकते हो, तुम्हीं चलते हो । न कोई चलाता है, न कोई रोकता है। अपने उत्तरदायित्व को समझो। यही तो बुद्ध का अंतिम वचन था : अप्प दीपो भव, अपने दीए बनो। सहारों की आशाएं छोड़ो। सहारों के ही सहारे तुम अब तक भटके हो। अपने पैरों पर खड़े हो जाओ । अंधेरा है, तो अंधेरा सही । राह खोजो । राह कठिन है; भटकाव वाली है, तो भटकने की हिम्मत लो, साहस करो। क्योंकि जो भूल-चूक करता है, वही सीखता है । जो भटकता है, वही कभी घर आता है । जो भटकने से डरता है, वह कभी घर नहीं आ पाता । भय की कोई जरूरत नहीं है । यह सारा अस्तित्व इसीलिए है कि तुम खोजो; भटको; गिरो-उठो और एक दिन पहुंच जाओ। पहुंचने के लिए यह सब जरूरी है। ऐसे बैठे घबड़ाते मत रहना कि कहीं तूफान न आ जाए; कहीं मेरा दीया न बुझ जाए; कहीं अंधेरे में मैं भटक न जाऊं ! कहीं यह न हो जाए! कहीं बादल न घिर आएं। ऐसे ही डरे-डरे बैठे रहे, तो ही चूकोगे। जो चलता नहीं, वही चूकता है। इस सूत्र को खयाल में रख लो। जो चलता है, वह तो एक न एक दिन पहुंच ही जाता है। कितना ही भटके, तो भी पहुंच जाता है। क्योंकि हर भटकाव कुछ न कुछ बोध लाता है। हर भूल से कुछ न कुछ सीख होती है। एक भूल एक बार की, दुबारा करने की फिर जरूरत नहीं है, अगर थोड़ी समझदारी बरतो । नयी भूलें होंगी। धीरे-धीरे भूलें कम होती जाएंगी। एक दिन ऐसा आएगा कि भूल करने को न बचेगी, उसी दिन पहुंच जाओगे । 'चरण मेरे रुक न जाएं। आज सूनेपंथ बिलकुल अकेली चल रही हूं।' अकेला कोई भी नहीं चल रहा है। तुम्हारे साथ परमात्मा चल ही रहा है। तुम्हारे भीतर ही बैठा है; साथ चल रहा है—यह कहना भी ठीक नहीं है। अकेले तो तुम चल भी न सकोगे। अकेले तो तुम्हारा होना भी नहीं है। अकेले तो श्वास भी न ले 326

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