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एस धम्मो सनंतनो बिलकुल अकेली चल रही मैं।'
बिलकुल अकेला कोई भी नहीं है। मजा तो ऐसा है कि जब तुम बिलकुल अकेले हो जाओगे, तभी पता चलता है कि अरे। मैं अकेला नहीं हं! जिस दिन जानोगे: न पत्नी मेरी, न पति मेरा, न भाई, न मित्र-कोई मेरा नहीं-उस दिन अचानक तुम पाओगे कि एक परम संगी-साथी है, जो भीतर चुपचाप खड़ा था। तुम भीड़ में खोए थे, इसलिए चुपचाप खड़ा था। तुम भीड़ से भीतर लौट आए, तो उससे मिलन हो गया। तुम बाहर संगी-साथी खोज रहे थे, इसलिए भीतर के संगी-साथी का पता नहीं चल रहा था। 'दूर मंजिल, कौन जाने कब मिले मुझको किनारा।'
यह बात भी गलत है। मंजिल बिलकुल पास है। इतनी पास है, इसीलिए दिखायी नहीं पड़ती। दूर की चीजें तो लोग देखने में बड़े कुशल हैं। पास की चीजें देखने में बड़े अकुशल हैं। दूर के चांद-तारे तो दिखायी पड़ जाते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन पर अदालत में एक मुकदमा था। एक हत्या हो गयी थी उसके पड़ोस में। और उससे पूछा गया कि तुमने यह हत्या देखी? उसने कहाः हां, मैंने देखी। पूछा : तुम कितनी दूर थे? उसने कहा : एक फर्लाग के करीब। मजिस्ट्रेट ने कहा कि रात में, अंधेरे में एक फर्लाग दर से तमने यह हत्या देख ली? कौन ने मारा; किसको मारा? तुम्हें कितने दूर तक दिखायी पड़ता है ? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहाः इसका तो मुझे पता नहीं। अब आप ही देखिए, चांद-तारे भी मुझे दिखायी पड़ते हैं; रात के अंधेरे में भी दिखायी पड़ते हैं! ___ चांद-तारे दिखायी पड़ते हैं रात के अंधेरे में। तो मुल्ला यह कह रहा है कि मुझे तो बड़े दूर की चीजें दिखायी पड़ती हैं; एक फर्लाग का मामला ही क्या है!
दूर का दिखायी पड़ना एक बात है; पास का दिखायी पड़ना बहुत कठिन है। क्योंकि तुम अपने से दूर-दूर हो, इसलिए दूर का दिखायी पड़ जाता है। अपने पास-पास कहां?
और परमात्मा पास है-यह कहना भी गलत होगा; क्योंकि पास में भी एक तरह की दूरी है। परमात्मा तुम्हारा भीतर अंतर्तम है। पास ही नहीं है, तुम ही हो। इसलिए देखना बहुत मुश्किल है। देखने वाला ही नहीं है कोई वहां, जो अलग से देख ले। ___ इसलिए तो जो जानते हैं, उन्होंने कहाः दृश्य की तरह परमात्मा कभी दिखायी नहीं पड़ता। दृश्य तो दूर होता है। परमात्मा का अनुभव होता है, जब तुम द्रष्टा हो जाते हो। परमात्मा मिलता है द्रष्टा को, द्रष्टा की भांति; दृश्य की भांति कभी नहीं। परमात्मा का अनुभव होता है, दर्शन नहीं।
जो कहते हैं : हमें परमात्मा का दर्शन हुआ है, वे गलत ही बात कहते हैं। दर्शन
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