Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ एस धम्मो सनंतनो तभी वे मक्त होंगे वहां से। उन्होंने भयंकर अपराध किया है। मेरे एक जैन मित्र हैं। गांधी के अनुयायी हैं, तो उनको समन्वय की धुन सवार रहती है। तो मुझसे वे बोले कि मैं समन्वय की एक किताब लिख रहा हूं। बुद्ध और महावीर में समन्वय–कि दोनों बिलकुल एक ही बात कहते हैं। मैंने कहा : जब किताब पूरी हो जाए, तो मुझे भेजना। किताब छपी तो उन्होंने मुझे भेजी। मैं देखकर चौंका। किताब का जो शीर्षक था, वह था भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध। ___ मैंने उनको पत्र लिखा। पूछा कि एक को भगवान और एक को महात्मा क्यों कहा? उन्होंने कहाः इतना फर्क तो है ही। महावीर भगवान हैं। बुद्ध महात्मा हैं; ऊंचे पुरुष हैं; मगर अभी आखिरी अवस्था नहीं आयी है। क्योंकि कपड़े पहने हुए हैं। वह कपड़े से बाधा पड़ रही है! कपड़े के पीछे बेचारों को महात्मा रह जाना पड़ रहा है। वे नंगे जब तक न हों, तब तक वे भगवान नहीं हो सकते! इसलिए तो जैन राम को भगवान नहीं मान सकते। और धनुष लिए हैं, तो बिलकुल नहीं मान सकते। और जो जीसस को देखा है, जो जीसस को मानता है, वह जब देखता है कृष्ण को बांसुरी बजाते, तो उसे बड़ा सदमा पहुंचता है। वह कहता है : ये किस तरह के भगवान ! भगवान तो जीसस हैं। दुनिया के दुख के लिए अपने को सूली पर लटकाया है। और ये सज्जन बांसुरी बजा रहे हैं! और दुनिया इतने दुख में है। तो यह कोई समय बांसुरी बजाने का है! और ये वृंदावन में रास रचा रहे हैं! और दुनिया दुख में सड़ रही है; महापाप में गली जा रही है। जीसस जैसा होना चाहिए कि अपने को सूली पर चढ़वा दिया, ताकि दुनिया मुक्त हो सके। अब तुम्हारी धारणा; तुम जो पकड़ लोगे। उस धारणा से तौलने चलोगे, तो बाकी सब गलत हो जाएंगे। तुम्हारी धारणा ने ही तुम्हें धक्का देने का उपाय कर दिया। अब तुम सोचते हो कि मेरे कारण तुम्हें धक्का लगा, तो तुम गलती में हो। मेरे कारण भी धक्का लग सकता है, वह धक्का तो तुम्हारे जीवन में सौभाग्य होगा। उससे तो क्रांति हो जाएगी। मगर वह यह धक्का नहीं है। जो धक्का तुम्हें लगा है, वह तुम्हारी धारणा का है। तुम एक पक्की धारणा लेकर आए थेः ऐसा होना चाहिए। और ऐसा नहीं है। __ अब हो सकता है, इन सज्जन को पच्चीस अड़चनें आयी होंगी। इनको पीड़ा हुई होगी। यह इनके अनुकूल नहीं है। जो तुम्हारे अनुकूल नहीं है, वह गलत होना चाहिए-ऐसी जिद्द मत करो। अभी तुमको सही का पता ही कहां है! सही का पता होता, तो यहां आने की जरूरत क्या होती! अभी आए हो, तो खुले मन से आओ; निष्पक्ष आओ। अपनी जराजीर्ण धारणाओं को बाहर रखकर आओ। 332

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366