Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna
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मंजिल है स्वयं में
समानता नहीं है।
मैंने एक झेन कहानी पढ़ी है । एक भिक्षु अपने गुरु की बरसी मना रहा था । गुरु चल बसे थे। लोगों ने पूछा कि हमें यह कभी पता ही नहीं था कि वे तुम्हारे गुरु थे ! तुमने कभी बताया भी नहीं। और आज तुम उनकी बरसी मना रहे हो !
उस भिक्षु ने कहा कि इसीलिए मना रहा हूं; क्योंकि मैं जीवन में कई बार उनके पास गया कि मुझे अपना शिष्य बना लो। उन्होंने कहा : तुझे शिष्य बनने की क्या जरूरत है ! तू तू ही रह। मैंने बहुत बार उनसे प्रार्थना की; उन्होंने बहुत बार मुझे ठुकरा दिया। और इसीलिए मैं उनका अनुगृहीत हूं। नहीं तो मैं एक प्रतिलिपि बन गया होता। मैं एक स्वतंत्र व्यक्ति बना - उनकी कृपा से । उन्होंने कभी मुझ पर थोपा नहीं कुछ ।
बड़े आश्चर्य की बात है; मैं तुम पर कुछ नहीं थोपता हूं। उलटी हालत हो जाती है, तुम मुझ पर थोपने की आकांक्षा लेकर आ जाते हो ! तुम सोचते हो : ऐसा होना चाहिए। जैसे कि तुम्हें ठीक का पता है। तुम्हें ठीक का बिलकुल पता नहीं है । जिसे ठीक का पता है, वह इस जगत के वैविध्य को स्वीकार करेगा, क्योंकि विविधता सत्य है।
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और लोग एक-दूसरे की प्रतिलिपि हो जाएं, तो जिंदगी बड़ी उबाने वाली हो जाएगी। एक कृष्ण काफी हैं। अनूठे हैं। मगर हजारों कृष्ण हो जाएं, तो सब रस गया। तब सारा रस गया; सारा सौंदर्य गया। एक बुद्ध अदभुत हैं। इसलिए भगवान दुबारा एक जैसे दो व्यक्ति पैदा नहीं करता । दुबारा कोई बुद्ध हुआ? दुबारा कोई कृष्ण हुआ? दुबारा कोई कबीर हुआ ? दुबारा कोई नानक हुआ ?
दुबारा भगवान पैदा ही नहीं करता । भगवान की कला यही है कि अद्वितीय, जोड़ बनाता है। हमेशा नए को निर्मित करता है।
लेकिन तुम अतीत से चलते हो। तुम अपना हिसाब लेकर आ गए हो। तो तुम्हें जरूर चोट लगी होगी, क्योंकि लगा कि मैं किसी की प्रतिलिपि नहीं हूं। मैं नहीं हूं। . मुझे क्षमा करो । चोट लग गयी, उसके लिए माफ करो ।
और फिर तुमने जाकर देखा बाहर कि 'भीड़ के बीच एक विदेशी युवा जोड़े को मनोहारी प्रेम-पाश में बंधे देखकर मैं ठगा रह गया । और सोचा : क्या यह भी धर्म कहा जा सकता है ?'
तुमसे पूछ कौन रहा है? युवा जोड़े ने तुमसे पूछा कि यह धर्म है या नहीं ? तुमने कोई ठेका लिया है दूसरे का धर्म तय करने का ? तुम हो कौन ? कोई पुलिस वाले हो ! तुम्हें प्रयोजन क्या है ?
युवा जोड़े की अपनी स्वतंत्रता है। तुम दखलंदाजी क्यों करना चाहते हो ? उन दो व्यक्तियों की अपनी निजी जीवन-धारा है। उन्हें ठीक लगा, वे प्रेम-पाश में बंधे हैं। तुम्हें अड़चन क्या हो रही है? जरूर तुम भी कहीं गहरे में प्रेम-पाश में बंधना
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