Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 356
________________ मंजिल है स्वयं में जाओ; कैसे विलीन हो जाओ; कैसे खो जाओ; कैसे समाप्त हो जाओ। __ और यह तो सच है कि जब तुम समाप्त होते हो, तभी परमात्मा प्रगट होता है। तुम्हारे मिटने में ही उसका होना है। पांचवां प्रश्नः आप कहते हैं कि बौद्ध धर्म में प्रार्थना के लिए जगह नहीं है। लेकिन बौद्ध मंदिरों में उनके अनुयायी प्रणति और प्रार्थना में झुकते पाए जाते हैं। यह कैसे? बद्ध को किसने सुना? जो लोग सुनना चाहते थे, सुन लिया। जो कहा गया था, वह नहीं सुना गया। बुद्ध के धर्म में प्रार्थना के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि बुद्ध के धर्म में परमात्मा के लिए ही कोई जगह नहीं है। प्रार्थना किससे करोगे? बुद्ध कहते हैं : परमात्मा बाहर नहीं है। अगर बाहर हो, तो प्रार्थना हो सकती है—हाथ जोड़ो; नमस्कार करो; मांग करो; स्तुति करो; महिमा का गीत गाओ। लेकिन परमात्मा बाहर नहीं है। परमात्मा भीतर है। और परमात्मा कहना भी उसे, ठीक नहीं है। क्यों कहना ठीक नहीं है? क्योंकि परमात्मा शब्द से ही ऐसा भाव होता है कि दुनिया को बनाने वाला, चलाने वाला। बुद्ध के विचार में न कोई चलाने वाला है, न कोई बनाने वाला है। दुनिया अपने से चल रही है। धर्म है, परमात्मा नहीं है। नियम है, नियंता नहीं है। इसलिए प्रार्थना किससे करो। . और प्रार्थना का मतलब ही क्या हो गया है? लोगों की प्रार्थना क्या है? खुशामद है। ___इस देश में इतनी रिश्वत चलती है, इतनी खुशामद चलती है, उसका कारण यही है कि इस देश में पुरानी आदत प्रार्थना की पड़ी है। इस देश से रिश्वत मिटाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि लोग भगवान को रिश्वत देते रहे हैं! चले! उन्होंने कहा कि चलो, हनुमान जी! अगर मेरा दुश्मन मर जाए, तो एक नारियल चढ़ा देंगे! ___यह क्या है? रिश्वत है। और खूब सस्ते में निपटा रहे हो! एक सड़ा नारियल खरीद लाओ, क्योंकि हनुमानजी के मंदिर में चढ़ाने के लिए कोई अच्छा नारियल तो खरीदता नहीं। __अलग दुकानें होती हैं तीर्थ-स्थानों में, जहां कि चढ़ाने के लिए नारियल बिकते हैं। अलग ही दुकानें होती हैं, जहां सड़े-सड़ाए नारियल बिकते हैं। और ऐसे 343

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