Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 352
________________ मंजिल है स्वयं में मैं तुमसे कहता हूं : करोगे कैसे आत्मघात ? शुद्ध जहर मिलता नहीं ! जमाना खराब है। सतयुग में ये बातें होती थीं। अब बहुत मुश्किल है ! और फिर तुम्हारी हालत संन्यास तक लेने की नहीं हो रही है... 1 एक और आदमी आत्मघात करना चाहता था । उसकी पत्नी घबड़ा गयी। उसने कमरा बंद करके भीतर और आत्मघात करने का उपाय किया । पत्नी पड़ोस के लोगों को बुला लायी । लोगों ने दरवाजा तोड़ा। तो देखा कि स्टूल पर चढ़े - म्याल से रस्सी बांधे - अपनी कमर में रस्सी बांधे खड़े थे ! लोगों ने पूछा : यह कर क्या रहे हो यहां ? आत्मघात कर रहे हैं। तो उन्होंने कहा : हमने कभी सुना नहीं कि कमर में रस्सी बांधने से कोई आत्मघात होता है ! गले में बांधो, अगर आत्मघात करना हो ! उसने कहा : पहले मैंने गले में ही बांधी थी। मगर दम घुटता है ! हिम्मत तो चाहिए न ! अब गले में बांधोगे, दम घुटेगा ही! तो वे अब कमर में बांधकर रस्सी आत्मघात कर रहे हैं ! एक सज्जन और आत्मघात करने रेल की पटरी पर गए। साथ में टिफिन भी ले गए थे ! एक चरवाहा वहां अपनी गाएं चरा रहा था, उसने पूछा कि आप यहां लेटे-लेटे क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि मैं आत्मघात करने की तैयारी कर रहा हूं। . पटरी पर लेटें हैं; टिफिन अपनी बगल में रखे हैं । अखबार भी पढ़ रहे हैं ! टिफिन किसलिए लाए हैं ? कितनी उन्होंने कहा : गाड़ियों का क्या भरोसा। हिंदुस्तानी गाड़ी; आए न आए !' लेट हो जाए ! भूखों मरना है क्या? तो टिफिन लेकर आए हैं! तुमसे न हो सकेगा। पहले संन्यास की तो हिम्मत करो। फिर असली आत्मघात संन्यास से घट जाएगा। यह तो जो तुम सोच रहे हो, नकली आत्मघात है । शरीर के बदलने से कुछ भी तो नहीं बदलेगा। फिर पैदा होओगे। फिर गर्भ होगा। फिर यही यात्रा शुरू हो जाएगी । असली आत्मघात संन्यास से ही घटता है। असली, क्योंकि अहंकार मर जाता है। असली, क्योंकि और जीने की आकांक्षा समाप्त हो जाती है। असली, क्योंकि फिर जन्म नहीं लेना पड़ता। ऐसी मृत्यु मरो कि फिर जन्म न लेना पड़े। वही तो धर्म की सारी प्रक्रिया है। धर्म का अर्थ है, ऐसे मरण की प्रक्रिया कि फिर दुबारा जन्म न हो। तुम शायद सोचो कि चलो, ये लोग चूक गए — कोई कमर में बांधकर खड़ा हो गया; किसी को जहर नकली मिल गया; किसी की ट्रेन लेट हो गयी - हम सब उपाय कर लेंगे। ऐसे ही सब उपाय मुल्ला नसरुद्दीन ने एक बार किए। पिस्तौल खरीद लाया । एक कनस्तर में मिट्टी का तेल भर लिया। एक रस्सी ली। नदी के किनारे पहुंचा। एक टीले पर चढ़ गया। एक वृक्ष से रस्सी बांधी। रस्सी को गले में बांधा। सब उपाय किए थे उसने, ताकि किसी तरह की चूक न हो। अगर एक उपाय चूक जाए, तो 339

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