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मंजिल है स्वयं में
तो पराए का हो सकता है। स्वयं का कैसे दर्शन होगा! स्वयं के दर्शन का कोई उपाय नहीं है। आत्म-दर्शन शब्द भी गलत है। आत्म-अनुभूति होती है, दर्शन नहीं होता। दर्शन का तो मतलब है: दो हो गए-द्रष्टा और दश्य। और वहां तो एक ही है: वहां कोई द्रष्टा नहीं, कोई दृश्य नहीं। एक पुलक होती है; एक भाव-दशा होती है। जिसको बुद्ध संवेग कहते हैं। एक संवेग होता है। तुम जान लेते हो, बिना जाने। पहचान लेते हो, बिना पहचाने। सामने कोई दिखायी नहीं पड़ता।
असल में तो जब सामने कुछ भी नहीं दिखायी पड़ता, जब सब दृश्य खो जाते हैं, सब विषय-वस्तु मस्तिष्क से विलीन हो जाती है; जब तुम विराट शून्य में खड़े हो जाते हो; देखने को कुछ भी नहीं होता-तभी देखने की ऊर्जा अपने पर लौटती है। बाहर कोई स्थान नहीं मिलता ठहरने को, तो अपने पर लौट आती है। ____ तुमने ईसाइयों की कहानी पढ़ी! जब बाढ़ आयी और सारी पृथ्वी डूबने लगी, तो नोह-बूढ़ा नोह-एक नाव बनाकर कुछ लोगों को और कुछ जानवरों को लेकर सुरक्षित स्थान की तरफ चला। दिनों पर दिन बीतते गए। चालीस दिनों तक भयंकर वर्षा हुई। सब डूब गया; सिर्फ नोह की नाव तैरती रही। अब तो भोजन भी चुकने लगा, जो नोह नाव पर ले आया था। चालीस दिन हो गए थे। अब खोज-बीन करनी जरूरी थी।
• वह रोज कबूतरों को छोड़ता अपनी नाव से। लेकिन कबूतर थोड़ी देर यहां-वहां घूमकर फिर वापस नाव पर आ जाते। कबूतरों को कोई बैठने की जगह न मिलती; तो अपने पर लौट आते; वापस नाव पर आ जाते। यह तरकीब थी जानने की कि जमीन करीब है कहीं कि नहीं। ___अंतिम दिन कबूतर नहीं लौटे, तो नोह ने कहाः बस, अब घबड़ाओ मत। अब जमीन करीब है। कबूतरों को कोई स्थल मिल गया है बैठने के लिए; अब वे नहीं लौटे हैं। कोई वृक्ष मिल गया है बैठने के लिए। जमीन करीब है। अब निश्चित हो जाओ। अब हम पहुंच जाएंगे। . फिर कबूतर जिंस दिशा में गए थे, उसी दिशा में नाव गयी और जल्दी ही किनारा मिल गया।
तुम्हारी चेतना तब तक भटकती रहती है, जब तक उसको ठहरने के लिए कोई जगह मिलती है। कोई विचार, कोई दृश्य, कोई कामना, कोई वासना-तब तक चेतना भटकती रहती है। जब सब विचार, सब वासना, सब कामना विसर्जित कर दी गयी; और चेतना का कबूतर उड़ता है, और उड़ता है, और कहीं बैठने को जगह नहीं मिलती; कोई जगह है ही नहीं बैठने को; तब अपने पर लौट आता है। उस अपने पर लौट आने में ही अनुभव है। ___और परमात्मा दूर नहीं है, न मंजिल दूर है। मंजिल मिली ही हुई है। जागो। जागते ही पता होता है कि जिसे कभी खोया नहीं था, उसे व्यर्थ ही खोजने निकल
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