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मंजिल है स्वयं में
योग-सूत्रों में कहा कि सुषुप्ति और समाधि समान हैं। सिर्फ एक भेद है : सुषुप्ति है बेहोश, और समाधि है होश। अन्यथा दोनों समान हैं। एक सी गहराई दोनों की है। सुषुप्ति में ही जब ध्यान का दीया जल जाता है, तो वह समाधि हो जाती है। लेकिन वही विश्राम है, वही गहराई है।
तो नींद में उतरने के पहले-बुद्ध ने कहा था-ध्यान करना। तो अब रोज-रोज क्या कहना कि ध्यान करो! यह प्रतीकात्मक हो गया था कि भिक्षुओ! अब जाओ। अंतिम कार्य करके और सो जाओ।
उस रात एक चोर भी आया था सभा में; और एक वेश्या भी आयी थी। जब बुद्ध ने यह कहा कि भिक्षुओ! अब जाओ। अंतिम कार्य करके सो जाओ। चोर ने समझा कि ठीक! बुद्ध को भी खूब पता चल गया कि मैं भी चोर हूं यहां मौजूद। मुझसे कह रहे हैं कि जाओ; अब अपनी चोरी वगैरह करो। अब रात बहुत हो गयी!
और वेश्या भी चौंकी। उसने कहा ः हद्द हो गयी! कि बुद्ध को मेरा पता चल गया इतनी भीड़ में! और उन्होंने मुझसे भी कह दिया कि अब जाओ। अपना रात का अंतिम कार्य करो!
दूसरे दिन सुबह जब बुद्ध ने समझाया, तो उन्होंने कहाः रात एक चोर भी था। और वह यहां से उठकर सीधा चोरी करने गया। और एक वेश्या थी; यहां से जाकर उसने अपनी दुकान खोली।।
- भिक्षु ध्यान करने चले गए। चोर चोरी करने चले गए। वेश्याओं ने दुकानें खोल लीं। और बुद्ध ने एक ही वचन कहा था कि अब जाओ; रात्रि का अंतिम कृत्य पूरा करके सो जाओ। इतना ही भेद हो जाता है!
जितने सुनने वाले, उतने अर्थ हो जाते हैं। उन अर्थों पर धर्म बनते हैं। धर्म यानी संप्रदाय। ये धर्म तो जराजीर्ण होते हैं। ये तो सड़ जाते हैं। इनसे बड़ी दुर्गंध उठती है। यह पृथ्वी इन्हीं की दुर्गंध से भरी है। ____ हिंदू मुसलमान से लड़ रहे हैं; ईसाई हिंदुओं से लड़ रहे हैं; जैन बौद्धों से लड़ रहे हैं। सब तरफ संघर्ष है। धर्म में कहां संघर्ष हो सकता है?
धर्म दो नहीं हैं, धर्म एक है। जिसको बुद्ध ने कहा है-एस धम्मो सनंतनो-वे किसी धर्म को सनातन नहीं कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, धर्म सनातन है। __ और सारे धर्म जो धर्म के नाम पर खड़े हो जाते हैं, वे सिर्फ अभिव्यक्तियां हैं; और अभिव्यक्तियां भी विकृत हो गयी हैं, रुग्ण हो गयी हैं। समय की धार ने उन्हें खराब कर दिया है; खूब धूल जम गयी है। ___ इसीलिए तो जिसे सच में ही धर्म की तलाश करनी हो, उसे बुद्धपुरुष को खोजना चाहिए, शास्त्र नहीं। उसे सदगुरु खोजना चाहिए, शास्त्र नहीं। कहीं कोई जीवंत मिल जाए, जहां अवतरण हो रहा हो धर्म का अभी; जहां गंगा अभी उतर रही हो; कहीं कोई भगीरथ मिल जाए, जहां गंगा अभी उतर रही हो तो ही तुम्हें आशा
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