Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 313
________________ एस धम्मो सनंतनो अहंकार विवाद लाता है। जहां अहंकार समाप्त होता है, वहां सत्य से संवाद शुरू होता है। विवाद की कोई निष्पत्ति न होती देख वे पांचों भगवान के चरणों में उपस्थित हुए। यह भी बात प्रतीकात्मक है। जब तुम विवाद की कोई निष्पत्ति न कर सको, तो किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाना चाहिए जो निर्विवाद हो। किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाना चाहिए जो तर्क से न जी रहा हो, जिसने सत्य का अनुभव किया हो। . तुम तो सत्य के संबंध में सोच रहे हो। सोचने से विवाद हल नहीं होता। अब उसके पास जाओ, जिसने सत्य को जाना है। उस जानने वाले से ही हल हो सकता मगर एक और बात समझना। यह तो जाना फिर भी बाहर से होगा। और बुद्ध जो कहेंगे, ये पांचों उसके अलग-अलग अर्थ भी ले सकते हैं। और विवाद फिर शुरू हो सकता है। अगर विवाद जारी ही रखना हो, तो कोई उपाय नहीं है उससे छूटने का। बुद्ध के पास जाकर भी ये पांचों लौट आएंगे। और एक कहेगा: बुद्ध ने ऐसा कहा। और दूसरा कहेगा : गलत कह रहे हो। ऐसा कहा ही नहीं। उनका प्रयोजन यह था। फिर विवाद नयी समस्या को लेकर शुरू हो जाएगा। लेकिन विवाद जारी रहेगा। बुद्ध के मरते ही बुद्ध के संप्रदाय में छत्तीस खंड हो गए! जो बुद्ध के मरते ही छत्तीस संप्रदाय पैदा हुए, वे बुद्ध के जीते भी रहे होंगे; एकदम से कैसे पैदा हो जाएंगे! ऐसा थोड़े ही होता है कि आज बुद्ध मरे और एकदम लोग अलग-अलग हो गए। ये छत्तीस वर्ग रहे ही होंगे, दबे रहे होंगे। बुद्ध की प्रतिष्ठा, बुद्ध के प्रभाव, बुद्ध की गरमी में, बुद्ध की ऊष्मा में ठहरे रहे होंगे। बुद्ध के सामने प्रगट न हो सके। इधर बुद्ध मरे, उधर सब विवाद उठ खड़े हुए। बुद्ध-धर्म छत्तीस खंडों में टूट गया। महावीर के जाते ही जैन-धर्म खंडों में टूट गया। ये विवाद रहे होंगे। ये एकदम से आकाश से पैदा नहीं हो सकते। कुछ तो समय लगता। महावीर जाएं दुनिया से; सौ दो सौ साल बाद विवाद पैदा हो; समझ में आता है—कि ठीक है, अब दो सौ साल हो गए। अब जिन्होंने महावीर को सुना था, वे नहीं हैं। जिन्होंने देखा था, वे नहीं हैं। अब विवाद स्वाभाविक है। लेकिन इधर महावीर मरे—इधर लाश पड़ी होती है-उधर विवाद शुरू हो जाता है! कबीर मरे-लाश पर ही विवाद हो गया! कि हिंदू चाहते हैं कि जलाएं; और मुसलमान चाहते हैं कि गड़ाएं। ये किस तरह के भक्त थे? यह कबीर की मौजूदगी में हिंदू हिंदू था, मुसलमान मुसलमान था। सिर्फ कबीर की प्रभा में, ज्योति में दबा हुआ पड़ा था। उस ज्योति के जाते ही सब जुगनू टिमटिमाने लगे। सब विवाद वापस लौट आए। तो इसका एक और प्रतीक गहरा है और वह यह है कि बाहर के बुद्ध के पास 300

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