Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 323
________________ एस धम्मो सनंतनो स्वाभाविक है, उससे ऊपर जाओगे, तो चेतना का स्वभाव प्रगट होता है। यह बिलकुल स्वाभाविक है, मानवीय है। बुद्ध को इतना चाहा; बुद्ध की चाह में सारा संसार छोड़ा; घर-द्वार छोड़ा; पत्नी-बच्चे छोड़े; बुद्ध के प्रेम में सब दांव पर लगा दिया है और बुद्ध चले! तो आंसू बिलकुल स्वाभाविक हैं। लेकिन इसके ऊपर एक और स्वभाव है। अगर आंसू रुक जाएं और जागरण घट जाए, तो बुद्ध से फिर कभी बिछुड़ना न हो। बुद्ध से बिछुड़ना तभी तक होता है, जब तक हम शरीर से बंधे हैं। जिस दिन हमें पता चले कि मैं चैतन्य हूं, उस दिन बुद्ध से कैसा बिछुड़ना! फिर स्वयं बुद्धत्व तुम्हारे भीतर विराजमान हो गया। फिर यह नाता न टूटने वाला है। शिष्य को एक न एक दिन इस दशा में आना चाहिए, जब वह गुरु जैसा हो जाए। शिष्य जिस दिन गुरु हो जाता है, उसी दिन पहुंचा। स्वभावतः भिक्षु रोने लगे। अहँतों को भी धर्मसंवेग हुआ। जो पहुंच गए थे, उनको भी संवेग हुआ। रोमांच हो गया। यह कभी सोचा नहीं था कि बुद्ध जाएंगे। सब जाएगा। सब बह जाएगा। बुद्ध जाएंगे-यह नहीं सोचा था। मान ही लिया था कि बुद्ध तो सदा रहेंगे। ___एक क्षण को वे भी कंप गए, जिनकी समाधि सम्हल गयी थी। .. अब ध्यान करना, संसार में जो कंप जाते हैं, वे बहुत प्राकृतिक व्यक्ति हैं-सामान्य। संसार में जिनका कंपन बंद हो गया, वे अरिहंत हैं। उनका अब संसार से कोई कंपन नहीं होता है। लेकिन अभी एक कंपन उनमें हो सकता है। वह कंपेन है-गुरु का छूटना। इससे भी पार जाना है। कोई मोह न रह जाए। अशुभ का मोह तो जाए ही जाए, शुभ का मोह भी जाए। पाप तो छुटे, पुण्य भी छूटे। संसार तो छूटना ही चाहिए, एक दिन निर्वाण और मोक्ष की वासना भी छूट जाए–तो परम मुक्ति, तो परिनिर्वाण। __उस समय धम्माराम नाम के एक स्थविर ने ऐसा सोचा कि मैं तो अभी रागरहित नहीं हुआ और बुद्ध के जाने का दिन करीब आ गया। बहुत दिन गंवा दिए। बहुत समय गंवा दिया। अब गंवाने को क्षण भी मेरे पास नहीं है। और शास्ता का परिनिर्वाण होने जा रहा है! इसलिए शास्ता के रहते ही मुझे अर्हत्व प्राप्त कर ही लेना है। अब कुछ बचाऊंगा नहीं। अब पूरा-पूरा डूबूंगा। अब कोई और किसी तरह के संकल्प-विकल्प में समय न गंवाऊंगा। अब शक्ति की एक छोटी सी किरण भी मुझसे बाहर न जाने दूंगा; सब समाहित कर लूंगा। एकांत में जाकर उन्होंने संकल्पपूर्वक गहन साधना शुरू कर दी। बुद्ध परंपरा में संकल्प का अर्थ होता है कि अब या तो बुद्ध होकर रहूंगा, या मौत आए। अब दो के बीच कोई और विकल्प नहीं है। जीवन गया। या तो मौत को चुनूंगा, या बुद्धत्व को। मरने को राजी हूं; अब जीने में मेरा कोई रस नहीं। संकल्प 310

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