Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 322
________________ समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान मेरा उपयोग कर लो, तो कर लो। यह औषधि ले लो, तो ले लो। चार महीने और, फिर मेरे जाने की घड़ी आ गयी। ___ अब यह बिलकुल स्वाभाविक है कि भिक्षु रोने लगे। बुद्ध जैसा व्यक्ति हो, और मोह पैदा न हो, यह अस्वाभाविक है। बुद्ध जैसा व्यक्ति हो, और लोगों का राग न लग जाए, यह असंभव है। बुद्ध जैसा व्यक्ति हो, तो साधारण भिक्षुओं की क्या बात, जो अर्हत्व को उपलब्ध हो गए हैं, जो अरिहंत हो गए हैं, जो स्वयं बुद्ध हो गए हैं, उनकी भी राग की रेखा शेष रह जाती है। इतने प्यारे व्यक्ति को पाकर खोने की बात ही छाती को तोड़ देगी। ठीक ऐसी ही घटना जीसस के जीवन में है। जिस रात उन्होंने अंतिम भोजन लिया अपने शिष्यों के साथ, उनसे कहा कि बस, यह आखिरी रात है। कल सुबह मैं जाऊंगा। घड़ी आ गयी। सूली लगेगी। वे रोने लगे। शिष्य रोने लगे। जीसस ने कहाः मत रोओ। फर्क समझना। बुद्ध और जीसस के वचनों का! जीसस ने कहा : मत रोओ। मेरे लिए मत रोओ। अगर रोना है, तो अपने लिए रोओ। रोना है, तो अपने लिए। मेरे लिए मत रोओ। मेरे लिए रोने से क्या होगा! जीसस यह कह रहे हैं कि अब तो अपनी तरफ देखो; अपनी तरफ मुड़ो। मेरे जाने की घड़ी आ गयी। मैं तुम्हें पुकारता रहा कि अपनी तरफ देखो। अब भी तुम मेरे लिए रो रहे हो! मेरे लिए मत रोओ। जो होना है, होकर रहेगा। हो ही चुका है। अब और समय मत गंवाओ। और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूं-जाग जाओ। अपने लिए रोओ। इतने दिन गंवाए, इसके लिए रोओ। इतने जन्म गंवाए, इसके लिए रोओ। आज की रात मत गंवा देना। ___ और जीसस ने कहा कि अब हम चलें, पहाड़ पर प्रार्थना करें। वे गए। और उन्होंने कहा : जागे रहना। लेकिन शिष्य सो-सो जाते हैं! जीसस प्रार्थना करते हैं घड़ीभर, फिर उठते हैं और देखते हैं, तो सब झपकी खा रहे हैं! . आखिरी रात आ गयी! कल इस आदमी से विदा हो जाएगी! फिर जन्मों तक मिलना हो, न हो। फिर ऐसा भव्य रूप, ऐसा दिव्य रूप आंखों में आए, न आए। फिर यह शुभ घड़ी कब घटेगी, कहा नहीं जा सकता है। लेकिन जाग नहीं सकते! निद्रा गहरी है। आखिरी रात भी सो रहे हैं! __ऐसा ही उस दिन हुआ, जब बुद्ध ने कहा कि चार माह के पश्चात मेरा परिनिर्वाण होगा, भिक्षु आंसू नहीं रोक सके। रोने लगे, जोर-जोर से रोने लगे। एक अर्थ में स्वाभाविक। लेकिन स्वभाव के ऊपर जाना है, तो असली स्वभाव मिलता है। इस जगत में दो तरह के स्वभाव हैं : एक तो प्रकृति का, और एक परमात्मा का। इस जगत में दो तल हैं-एक पदार्थ का, एक चेतना का। जो पदार्थ के लिए 309

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