Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 333
________________ एस धम्मो सनंतनो जाने दो। ताकि जो आ सकता है, आ सके। स्थान बनाओ। सिंहासन खाली करो। बुद्ध तो आते रहे, आते रहेंगे; तुम पुराने बुद्धों को अगर जकड़कर बैठे रहे, तो नए बुद्धों का तुम्हारे द्वार में प्रवेश न हो सकेगा। वे दस्तक भी देंगे, तो भी दस्तक तुम्हें सुनायी न पड़ेगी। इसलिए तुम शाश्वत धर्म से वंचित रह जाते हो। तुम्हारे हाथ में जो लगता है, वह कूड़ा-करकट है। उसी कूड़ा-करकट की तुम पूजा करते चले जाते हो। तुम्हारे हाथ में जो लगता है; वह रूढ़ियों का समूह है, अंधविश्वास। और सदियों-सदियों में उनका ढंग इतना बदल गया है कि अगर बुद्ध आज लौटें, तो बौद्धों को देखकर पहचान न पाएंगे। देखो कैसी घटना घटती है! उदाहरण के लिए : बुद्ध ने कहा था अपने भिक्षुओं को कि भिक्षापात्र में जो मिल जाए, जो लोग दान कर दें, उसी को स्वीकार कर लेना। मांग मत करना। कोई रूखी रोटी डाल दे, तो उसे स्वीकार कर लेना। कोई हलुवा दे दे, तो उसे स्वीकार कर लेना। मांग मत करना। भिक्षापात्र लेकर खड़े हो जाना; कोई इनकार कर दे, तो बिना किसी क्रोध के, रोष के चुपचाप आगे बढ़ जाना। जो मिल जाए। और भिक्षापात्र जब भर जाए, तो घर लौट आना। कहीं अच्छी चीज मिलती हो, तो इशारा भी मत करना आंख से कि थोड़ी और दे दो। और कहीं रूखा-सूखा मिलता हो, तो मुंह मत सिकोड़ लेना। जो मिले, वही सौभाग्य। जो मिले, उसके लिए धन्यवाद। और जो मिले, उसी से काम चला लेना। एक दिन ऐसा हुआ कि एक भिक्षु भिक्षा मांगने गया। एक चील मांस का टुकड़ा लेकर उड़ती थी। और उस चील का मांस का टुकड़ा छूट गया, और संयोगवशात भिक्षु के पात्र में गिर गया। अब भिक्षु को सवाल उठा कि बुद्ध ने कहा है, जो पात्र में मिल जाए, उसका तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। अब आज यह मांस गिर गया पात्र में, अब क्या करना! स्वीकार करना कि नहीं करना? उसने आकर बुद्ध के सामने सवाल रखा। बुद्ध क्षणभर सोचे। अगर बुद्ध कहते हैं कि नहीं; यह मांस का टुकड़ा स्वीकार मत करो; इसे फेंक दो, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम मांसाहारी हो जाओ...। और यह तो संयोग की बात थी। भूल से गिरा है चील के। कोई डाला नहीं है तुम्हारे पात्र में। अगर मैं यह कहूंगा, तो आज नहीं कल लोग विवेचन करने लगेंगे कि क्या छोड़ना, क्या नहीं छोड़ना; फिर कठिनाई खड़ी होगी। और चीलें कोई रोज थोड़े ही मांस डालेंगी। यह तो संयोग है, कभी घट गया। अब शायद कभी न घटे। इस एक संयोग के लिए अगर मैं नियम बनाऊं कि तुम्हारे ऊपर छोड़ देता हूं कि कभी ऐसी झंझट हो, तो त्याग देना; ऐसी कोई स्थिति बन जाए, और तुम्हें संदेह हो, तो त्याग देना तो फिर उसी नियम में से तरकीबें निकल आएंगी। फिर रूखा-सूखा लोग छोड़ देंगे, फिर अच्छा स्वीकार कर लेंगे। कुछ उपाय खोज लेंगे। 320

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