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समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान
प्रेम की अपनी भंगिमा है। इस प्रेम की अपनी मुद्रा है।
बुद्धों से प्रेम करना हो, तो एक ढंग है। सांसारिकों से प्रेम करना हो, तो एक और ढंग है। सांसारिक से प्रेम करो, तो संसार की भेंटें उसके पास लाओ : हीरे-जवाहरात लाओ; गहने लाओ; साड़ी लाओ; सुंदर वस्त्र लाओ। सांसारिक से प्रेम करो, तो संसार की भेंट लाओ । बुद्धों से प्रेम करो, तो बुद्धत्व की भेंट लाओ। और कोई चीज काम नहीं पड़ेगी । बुद्धों से प्रेम करो, तो एक दिन बुद्ध हो जाओ । एक दिन उनके चरणों में आकर अपने सिर को रखो, ताकि वे तुम्हारे शून्य को देख सकें। ताकि वे कह सकें — कि ठीक; तू धन्यभागी । तू पहुंच गया। एक दिन अपना शून्य उनके चरणों में चढ़ाओ ।
तो बुद्ध ने कहाः माला-गंध आदि से पूजा करने वाले मेरी पूजा नहीं करते; पूजा करने का ढोंग कर लेते हैं ।
सस्ती पूजा है— माला-गंध-फूल । अपने को नहीं चढ़ाते । कूड़ा-करकट चढ़ाकर सोचते हैं, काम पूरा हो गया !
पूजा तो वही कर रहा है, जो धर्म के अनुसार चल रहा है। जो मैंने कहा है, उसके अनुसार चल रहा है। चाहे कभी मेरे चरणों में न आए। लेकिन जो मेरे अनुसार चल रहा है; जिसने मेरी बात समझी और पकड़ी, वही मेरी पूजा करता है।
• आंसुओं के बहाने से भी कोई सार नहीं है । मत रोओ। समय मत गंवाओ। और ऐसा करोगे, तो मुझे समझे ही नहीं। यही तो समझा रहा हूं जीवनभर से कि यहां सब क्षणभंगुर है। यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है । इसलिए किसी से मोह न बांधो। मुझसे भी नहीं। कम से कम मुझसे तो बिलकुल नहीं ।
रोओ नहीं; सोओ नहीं - जागो ।
तब उन्होंने इस गाथा को कहा ।
धम्माराम का नाम भी प्यारा है। और यह गाथा शुरू होती है :
धम्मारामो धम्मरतो धम्मं अनुविचिन्तयं।
धर्म में रमण करने वाला - धम्माराम । धर्म में रत — धम्माराम | धर्म का चिंतन करने वाला — धम्माराम । धर्म का अनुसरण करने वाला — धम्माराम । और ऐसा जो धम्माराम है, वही भिक्षु सद्धर्म को उपलब्ध होगा— चूकेगा नहीं; च्युत नहीं होगा । मैं हूं, इसकी फिक्र न करो। मैं तो जाऊंगा। मैं आया, जाऊंगा। धर्म सदा रहता है। तुम धम्माराम हो जाओ। तुम मुझसे अपने को मत जोड़ो, धर्म से अपने को जोड़ो । मुझसे जोड़ोगे, तो रोओगे, पछताओगे; क्योंकि मैं तो जाऊंगा। धर्म से जोड़ोगे, तो कभी नहीं जाता। धर्म मात्र शाश्वत है।
धर्म का अर्थ, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म नहीं है। धर्म का अर्थ है : वह शाश्वत
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