Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ एस धम्मो सनंतनो पड़ रहा है। यह असहज दशा हो गयी। जबर्दस्ती हो गयी। सहज का अर्थ होता है-स्वस्फूर्त। बुद्ध ने कहाः संवर दुष्कर है। इसका संवर या उसका संवर नहीं-संवर ही स्वयं दुष्कर है। भिक्षुओ! ऐसे व्यर्थ के विवादों में न पड़ो। क्योंकि विवाद मात्र के मूल में अहंकार है। विवाद की कोई निष्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि अहंकार की कोई निष्पत्ति नहीं है। अहंकार भरमाता है, भटकाता है—पहुंचाता नहीं। पहुंचा ही नहीं सकता है। विवादों में व्यय न करके शक्ति को भिक्षुओ, समग्र शक्ति को संवर में लगाओ। सारी शक्ति को उंडेल दो अपने भीतर के दीए में, ताकि ज्योति भभककर उठे। उस ज्योति के जगने में ही सब दिखायी पड़ेगा : क्या व्यर्थ है, क्या सार्थक है। क्या असार है, क्या सार है। और असार को असार की तरह देख लेना, असार से मुक्त हो जाना है। सभी द्वारों का संवर करो भिक्षुओ! इस झंझट में मत पड़ो कि आंख का करूं, कि कान का करूं, कि नाक का करूं। आंख का कर लोगे, तो क्या फर्क पड़ेगा? अगर आंख को किसी तरह दबा लिया, तो जितनी आंख की वासना थी, वह कान में सरक जाएगी। यह रोज होता है। तुमने देखा, अंधा आदमी संगीत में बहुत कुशल हो जाता है। उसकी ध्वनि की क्षमता बढ़ जाती। क्यों? क्योंकि आंख से जो ऊर्जा बाहर जाती थी, अब आंख से तो मार्ग न रहा, अब वह कान से जाने लगी। जैसे झरने को एक तरफ से रोक दिया, तो वह दूसरी तरफ से बहने लगेगा। दूसरी तरफ से रोक दिया, तो तीसरी तरफ से बहने लगेगा। झरना बहेगा। ___इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि जो लोग किसी एक इंद्रिय को नियंत्रण करने में लग जाते हैं, उनकी कोई दूसरी इंद्रिय खूब सशक्त होकर प्रगट होने लगती है। और कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि दूसरी इंद्रिय ज्यादा भयंकर सिद्ध हो। क्योंकि दो इंद्रियों का बल इकट्ठा मिल जाएगा उसे। इसलिए सवाल यह नहीं है कि इसका करूं संवर या उसका। बुद्ध कहते हैं: संवर करो। जागो। सारी इंद्रियों के द्वारों के पार हो जाना है। संवर दुखमुक्ति का उपाय है। तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं: चक्खुना संवरो साधु साधु सोतेन संवरो। घाणेन संवरो साधु साधु जिह्वाय संवरो।। . 'आंख का संवर शुभ है, साधु है–साधु बनाता व्यक्ति को। कान का संवर 302

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366