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एस धम्मो सनंतनो
__ और अंतिम बात ः नदी, तुमने देखा होगा, कभी-कभी जीते आदमी को डुबा देती है और मार डालती है। लेकिन मुर्दे को तैरा देती है, ऊपर आ जाता है मुर्दा। बुद्ध की विचार-सरणी से इसका भी बड़ा मेल है।
तुमने देखा यह मजा कि जिंदा आदमी, जो बचना चाहता है, वह कभी-कभी डूब जाता है। और मुर्दा, जिसको बचने की कोई आकांक्षा ही नहीं है-मुर्दा ही हो गया, आकांक्षा कहां-वह तैर जाता है। जिंदा आदमी नदी की तलहटी में बैठ जाता है। मुर्दा आदमी सतह पर आ जाता है! ___ मुर्दे को कुछ कला आती है, जो जिंदा आदमी को नहीं आती है। मुर्दे को समर्पण है। मुर्दा बचने की आकांक्षा नहीं करता, इसलिए नदी भी उस बचाती है।
जो बचने की आकांक्षा नहीं करता, अस्तित्व उसे बचाता है। जो संघर्ष नहीं करता, अस्तित्व उसको विजय देता है। और जो अस्तित्व से लड़ने लगता है, उसको तोड़ डालता है।
तुम प्रकृति से लड़ोगे, तो हारोगे। तुम प्रकृति के साथ हो जाओ। तुम प्रकृति को साथ ले लो। तुम्हारे और प्रकृति के बीच एक सरगम पैदा हो जाए, संगीत पैदा हो जाए, तो तुम्हारी जीत निश्चित है। तुम तभी जीतोगे, जब प्रकृति के साथ होओगे। क्योंकि प्रकृति ही जीत सकती है, तुम नहीं जीत सकते। तुम हारोगे, अगर प्रकृति के विपरीत लड़ोगे। क्योंकि तुम कैसे जीतोगे? अंश कैसे जीत सकता है पूर्ण से? अंश कैसे जीत सकता है अंशी से?
तो नदी में बचने का उपाय यही है कि तुम छोड़ दो अपने को। तुम संघर्ष न करो। तुम नदी पर भरोसा कर लो और छोड़ दो अपने को-समर्पण!
ऐसे कुछ सूत्र वासुदेव नदी के किनारे बैठ-बैठ सीखा है। ऐसे ही कुछ सूत्र बुद्ध ने जीवन की नदी के किनारे बैठ-बैठ सीखे हैं। सीखना आना चाहिए, तो कहीं भी सीखना हो सकता है। और सीखना न आता हो, तो बुद्धों के पास बैठकर भी तुम बुद्धू ही रह जाओगे।
इसलिए वासुदेव कहता है: क्या खोजना गुरु को। जहां हो, वहां गुरु है। वृक्षों से सीख लो। पक्षियों से सीख लो। चांद-तारों से सीख लो। नदी-पहाड़ों से सीख लो। जिसे सीखना है, उसे चारों तरफ से शिक्षा मिल रही है। और जिसे नहीं सीखना है, जो आंख बंद किए है, और कान बंद किए बैठा है, वह बुद्धों का सत्संग भी करता रहे, तो कुछ भी न होगा। वहां से भी खाली हाथ गया, खाली हाथ लौट आएगा।
असली बात है : तुम्हारी सीखने की क्षमता, कुशलता।
क्या है सीखने की कुशलता का मूल आधार? एक ही आधार है और वह है-विनम्रता, वह है-झुकना, वह है-खुला होना। , जहां सीखना हो, वहां अपने द्वार-दरवाजे खोल देना। वहां पक्षपात से भरे हुए मत जाना। वहां सिद्धांतों से लदे हुए मत जाना। वहां जानकार की तरह मत जाना,
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