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एस धम्मो सनंतनो
डरो मत। डरने से क्या सार है! डरे तो जीवन से भी चूके, मौत से भी चूकोगे। जीवन भी ऐसे ही जीए, न के बराबर। और ऐसे ही मर भी जाओगे, खाली के खाली! लेकिन तुम्हें कुछ दिखायी पड़ना शुरू हुआ है, उसका उपयोग कर लो।
इतना दर्द न दो मुझको। इतना प्यार न दो मुझको। ये पुरवैया-सा जीवन ये पूजा-सा उजला तन ये सावन के मेघ नयन इतनी खुशियां इतना गम कैसे झेल सकेगा मन? इतना प्यार न दो मुझको। इतना दर्द न दो मुझको। आशाएं वनजारिन हैं पीड़ाएं मनिहारिन हैं इच्छाएं पनिहारिन हैं जो कुछ मिला वही क्या कम? बहुरुपिया-सा मौसम इतना प्यार न दो मुझको। इतना दर्द न दो मुझको। सरसों से पियराए दिन अमुवां से गदराए छिन सांसें पग धरती गिन-गिन ऊबड़-खाबड़ रस्ते हैं केवल सपने सस्ते हैं इतना प्यार न दो मुझको।
इतना दर्द न दो मुझको। न तो आदमी प्यार सह पाता, न पीड़ा सह पाता। दोनों से मुक्त हो जाना जरूरी है। और दोनों से मुक्त हो जाने का उपाय क्या है?
जो आए, उसे जीयो। जो आए, उसे परिपूर्णता से जीयो। पीड़ा आए, तो पीड़ा को। प्यार आए, तो प्यार को। सुबह हो तो सुबह, और सांझ हो तो सांझ। जो आए, उसे परिपूर्णता से जीयो; अधूरे-अधूरे नहीं, बे-मन से नहीं।
तुम थोड़ा चौंकोगे। क्योंकि तुम कहते हो ः सुख तो हम पूरे मन से जीना चाहते हैं, मगर मिलता नहीं। और दुख कौन पूरे मन से जीना चाहेगा! क्यों जीना चाहेगा? और मिलता बहुत!
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