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भीतर डूबो
तुम जरा दुख को भी पूरे मन से जीने की कोशिश करो। क्या मतलब है मेरे कहने का?
तम्हारे सिर में दर्द है, मान लो, उदाहरण के लिए। साधारण चिंता यही होती है कि कैसे मिटे? न मिटे, तो कम से कम भूल जाए। चलो, एस्प्रो ले लो, कि एनासिन ले लो। मिटे न, तो भूल ही जाए।
तुमने कभी एक प्रयोग किया ः शांत बैठ जाओ, स्वीकार कर लो कि सिर में दर्द है आज। अंगीकार कर लो। तनाव छोड़ दो। सिर के दर्द के प्रति दुर्भाव छोड़ दो। मिट जाए—यह धारणा छोड़ दो। है-स्वीकार कर लो। विश्राम में हो जाओ
और शांति से सिरदर्द को देखोः क्या है? तुम चकित हो जाओगे। जैसे-जैसे स्वीकार बढ़ेगा, वैसे-वैसे दर्द कम हो जाएगा। __यह करके देखो। यह तो प्रयोगात्मक है। यह तो योग की सामान्य प्रक्रियाएं हैं। यह असली योग है। शरीर का व्यायाम, और उलटे-सीधे खड़े होना-नकली योग है। उसका कोई मूल्य नहीं है।
चकित होकर रह जाओगे, विस्मय से भर जाओगे। जैसे-जैसे स्वीकार बढ़ेगा, दर्द कम होता जाएगा। स्वीकृति की मात्रा बढ़ती है, दर्द की मात्रा कम होती है। और जब तुम शांत भाव से देखोगे, साक्षी बन जाओगे, तो तुम पाओगे कि दर्द की मात्रा भी कम हो रही है, दर्द का क्षेत्र भी कम हो रहा है। __ पहले लगता था, पूरे सिर में है। अब लगता है कि बस, एक कोने में है। और जागो। और अंगीकार करो। और साक्षी बनो। और तुम पाओगे कि अब एक कोने में भी नहीं है। जैसे सुई चुभती हो, ऐसे एक छोटे से स्थल पर केंद्रित है। __ और जागो, और स्वीकार करो। यह सुई के बराबर जो दर्द रह गया है, यह यही कह रहा है कि अभी सुई के बराबर अस्वीकार रह गया है। यह यही कह रहा है कि अभी सुई के बराबर इनकार रह गया है। यह यही कह रहा है कि अभी सुई के बराबर साक्षीभाव का अभाव रह गया है। बस, इतना ही; और कुछ नहीं। - और तब तुम अचानक पाओगेः वह घड़ी आ जाती है, जब अचानक दर्द खो जाता है। फिर लौट आता है, फिर खो जाता है। फिर लौट आता है, फिर खो जाता है। इसका मतलब?
इसका मतलब यह हुआ कि जब तुम्हारा स्वीकारभाव खो जाता है, तब दर्द लौट आता है। जब तुम्हारा स्वीकारभाव लौट आता है, दर्द खो जाता है। दोनों साथ नहीं हो सकते। जैसे दीया ले आओ कमरे में, तो फिर अंधेरा खो जाता है। और दीया बुझा दो, तो अंधेरा आ जाता है। ऐसा साक्षीभाव का दीया जलता हो, तो दर्द खो जाता है। सब पीड़ा खो जाती है। सब भय खो जाता है। सब चिंता खो जाती है।
और तब तुम्हारे हाथ में कुंजी लगी जा रही है। फिर तुम उसका उपयोग करना चाहो, तो करो; न करना चाहो, तो न करो। पर कुंजी तुम्हारे हाथ लगी जा रही है।
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