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एस धम्मो सनंतनो
थे। प्रतिपल सब बह रहा है। ___वासुदेव इसी सत्य को कह रहा है। वासुदेव एक मांझी है। वह नदी में लोगों को इस पार से उस पार उतारने का काम करता है। वर्षों से यही काम करता है। नदी के साथ ही रहा है। जब कोई नहीं होता, तो एकांत में नदी के किनारे बैठा होता है। जब कोई आ जाता है, तो उसे नदी पार करा देता है।
उसने नदी के सब रूप-रंग देखे हैं। वर्षा में नदी का तूफानी रूप देखा है, जब भयंकर बाढ़ आती है और नदी फैलकर सागर जैसी हो जाती है। और उसने गर्मी में इसी नदी की सूखी हुई देह भी देखी है, जैसे तन्वंगी-जरा सी धार रह जाती है!
उसने इस नदी में बहुत भाव-भंगिमाएं देखी हैं—प्रवाह की, गति की, गत्यात्मकता की। शांत इस नदी के किनारे बैठकर उसने नदी की मरमर ध्वनि सुनी है। नदी के प्रवाह को देखकर उसने पाया कि जीवन बहा जा रहा है। जीवन की क्षणभंगुरता समझी है। नदी में उठते-बनते-मिटते बबूलों को देखकर उसने अपने को भी एक बबूला समझा है। यहां सभी बनता है, सभी मिट जाता है। यहां कुछ भी थिर नहीं है। __ ऐसे नदी के सत्संग में धीरे-धीरे उसे बोध हुआ है। उस बात को वासुदेव कहता है सिद्धार्थ से-कि नहीं किसी गुरु के पास जाने की जरूरत है; और न कोई शास्त्र पढ़ने की। मैं तो इस नदी के पास रह-रहकर ही जान गया, सीख गया, समझ गया।
कुछ बातों का प्रतीक नदी है। पहला तो—बहाव।
जीवन के अधिकतम दुख इसीलिए हैं कि तुमने जीवन को नदी की तरह नहीं देखा है। मेरा आशय है कि तुम्हारे जीवन में जो भी है, तुम उसे पकड़ रखना चाहते हो। और यहां कोई भी चीज पकड़कर नहीं रखी जा सकती। यहां कोई चीज रुकती नहीं, ठहरती नहीं। तुम हारोगे। तुम विषाद से भरोगे। विफलता तुम्हारे जीवन का अंग हो जाएगी। __ और तुमने हर चीज पकड़नी चाही है। जो भी आया, तुमने उसे पकड़ रखना चाहा है। तुम्हारे घर एक बेटा पैदा हुआ और तुमने पकड़ रखना चाहा है। लेकिन यह बेटा जाएगा। यह बड़ी दुनिया पड़ी है; इसे बहुत खोज करनी है; इसे बहुत दूर की यात्राएं करनी हैं। तुमने अगर इसे पकड़ा, तो तुम दुख पाओगे। तुम्हें छोड़ने की तैयारी होनी चाहिए। जैसे एक दिन बच्चा मां का गर्भ छोड़ देता है, ऐसे ही एक दिन बच्चा मां की छाया भी छोड़ देगा। जाएगा दूर-स्वयं की खोज में लगेगा। और स्वयं होने के लिए माता-पिता को छोड़ना ही पड़ेगा। लेकिन अगर मां-बाप पकड़ रखना चाहें, तो कष्ट खड़ा होगा; उनके लिए भी कष्ट खड़ा होगा, बेटे के लिए भी कष्ट खड़ा होगा।
तुम्हारा किसी से प्रेम हुआ, तुम जल्दी से पकड़ रखना चाहते हो। प्रेम को हम कितनी जल्दी विवाह बनाने में लग जाते हैं ! प्रेम हुआ नहीं कि हम विवाह की सोचने
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