________________
एस धम्मो सनंतनो
इंदक ने अपने लिए लाए भोजन में से—इंदक खुद ही भिक्षु है, लेकिन अनुरुद्ध बीमार थे, और इंदक अपने लिए मांगकर भोजन लाया था-बूढ़े अनुरुद्ध को उसने कलछीभर अपने भोजन में से भोजन दिया। और देवता कह रहे हैं कि हमने सुना है कि उसका दान अंकुर के दान से ज्यादा श्रेष्ठ है और महाफल लाने वाला है। ___भगवान के तातविंस भवन में पांडुकमल शिलासन पर बैठे समय देवताओं में यह चर्चा चली—कि इंदक के अपने लिए लाए भोजन में से कलछीभर अनुरुद्ध स्थविर को दिया दान का फल, अंकुर के दस हजार वर्ष तक बारह योजन तक चूल्हों की कतार बनवाकर दिए हुए दान से भी महाफल हुआ है। यह कैसा गणित है? इसके पीछे तर्क-सरणी क्या है?
इसके पीछे बड़ी तर्क-सरणी है। अंकुर ने जो दिया है, उसके पास बहुत है, इसलिए दिया है। देकर उसे कोई अड़चन नहीं होती। देना सुविधापूर्ण है। सच तो यह है कि उसे हाथ में एक कला पकड़ गयी, एक कुंजी पकड़ गयी। दस हजार सालों में जितना दिया, उतना धन बढ़ता गया। उसने और दिया, तो और धन बढ़ता गया है। देने से उसे कोई कष्ट नहीं हुआ है। देने से उसे कोई पीड़ा नहीं हुई है। देने में कोई त्याग नहीं है, कोई बलिदान नहीं है। देना सुविधापूर्ण है।
इंदक का देना ज्यादा मूल्यवान सिद्ध हुआ है। इंदक भीख मांगकर लाया है। वह गरीब भिखारी जैसा भिक्षु है। उसकी कोई प्रतिष्ठा नहीं है। उसे कोई जानता नहीं है। उसे भीख मिलना भी मुश्किल होती होगी।
तुम थोड़ा सोचो! बुद्ध जब एक गांव में आते थे, तो उनके साथ दस हजार भिक्षु आते थे। छोटे-छोटे गांव बिहार के, उनमें दस हजार भिक्षुओं को भोजन मिलना! बड़ी कठिन बात थी। जो अग्रणी थे, उनको तो सरलता से मिल जाता था। लोग निमंत्रण दे देते थे–महाकाश्यप को, कि सारिपुत्त को, कि मौद्गल्यायन को, कि अनुरुद्ध को, कि मंजुश्री को-ये तो बड़े-बड़े प्रसिद्ध बोधिसत्व थे, इनको तो लोग निमंत्रण करके ले जाते थे। लेकिन फिर दस हजार भिक्षुओं की भीड़ थी। उसमें दीन-हीन भिक्षु भी थे, जिनका कोई नाम भी नहीं जानता था। इनको भिक्षा मिलनी भी कठिन हो जाती थी।
इंदक ऐसा ही गरीब भिक्षु है, अज्ञात नाम, अज्ञात कुल। मुश्किल से भिक्षा मिली होगी। हो सकता है, दो-चार दिन बाद मिली हो। दो-चार दिन भूखा रहा हो।
और इधर आया और देखा कि अनुरुद्ध बीमार हैं। बूढ़े हैं। और भिक्षा मांगने नहीं जा सके हैं। शायद जो थोड़ा सा लाया था, उसमें से आधा या आधे से ज्यादा, कलछीभर, अनुरुद्ध को उसने दे दिया है। ___ इसके पीछे सीधा गणित है। जब तुम बिना किसी कष्ट के देते हो-देना तो अच्छा है, लेकिन इसका महाफल नहीं हो सकता। फल होगा। महाफल तो तब होगा, जब तुम जरूरत पड़े, तो अपने को त्याग कर भी देते हो, अपने को दांव पर
238