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धर्म का सार-बांटना
लगाकर भी देते हो-तब महाफल होगा।
फल और महाफल में क्या फर्क है? फल बाहर का होता है; महाफल भीतर का। फल तो हुआ अंकुर को। धन दिया था, धन मिलता रहा। जितना दिया, उतना धन मिलता रहा। यह फल है। इससे यह मत समझना कि उसको कम मिला। दस रुपए दिए थे, तो हजार मिले। हजार दिए, तो दस हजार मिले। दस हजार दिए तो लाख मिले, कि करोड़ मिले। ___ तुम्हारे हिसाब में तो खूब महाफल हुआ। लेकिन बुद्ध की विचार सरणी में वह महाफल नहीं है, क्योंकि धन ही मिला न। एक रुपया दिया था, करोड़ रुपए मिले, तो भी मिला तो धन ही न। बाहर का ही दिया था, बाहर का ही मिला। फिर ये करोड़ भी दे दोगे, तो और अनंत करोड़ मिलेंगे। मगर मिलेगा बाहर का ही। बाहर का दोगे, तो बाहर का ही मिलेगा। बाहर के देने से भीतर का नहीं मिलता है। और भीतर है, असली महाफल।
इस इंदक गरीब भिक्षु ने वह जो कलछीभर दिया, इसमें भीतर का भी कुछ दिया। बाहर का तो दिया ही, वह तो सब को दिखायी पड़ रहा है। भीतर का भी कुछ दिया। इसमें त्याग है, इसमें आहुति है। इसमें अपने को बाद देने की क्षमता है।
इसने अपने को हटा लिया बीच से। इसने अपने अहंकार को बीच में नहीं आने दिया, अपनी अस्मिता को बीच में नहीं आने दिया कि मुझे भी जरूरत है, कि मैं भी भूखा हूं, कि मैं दो दिन का भूखा हूं-इसने यह कोई बात नहीं आने दी। वृद्ध, बीमार अनुरुद्ध, इसने अपना भोजन उन्हें दे दिया। यह शायद उस दिन भूखा ही रह गया होगा। अध-पेट रह गया होगा। पानी पीकर ही सो गया होगा। इसने भीतर का कुछ दिया है। इसका महाफल हुआ है।
देवताओं में चर्चा चलती है। क्योंकि देवता भीतर की बात नहीं देख सकते। देवता बाहर की ही देख सकते हैं। जो भीतर की देख लें, वे तो बुद्धपुरुष हो जाते हैं। उनको देवता नहीं कहा जाता। वे देवताओं के पार हो जाते हैं। . देवता तो सुख देख सकते हैं-धन का, पद का, प्रतिष्ठा का। देवता तो सुख में तल्लीन हैं, उनकी बाहर की पकड़ है। उनको समझ में नहीं आ रहा है कि यह बात कुछ जंचती नहीं। यह कौन सा नियम है ? हमने सुना कि इंदक का फल ज्यादा है! शायद बुद्ध ने कहा होगा कि इंदक का फल ज्यादा है।
अंकुर का फल है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं है। बाहर-बाहर का है। इससे इसकी आत्मा अछूती रह गयी है।
इसे सुनकर-देवताओं की इस चर्चा को सुनकर-शास्ता ने अंकुर से कहा, जो सामने ही बैठा हुआ है, कि अंकुर! दान चुनकर देना चाहिए। ऐसा करने से वह अच्छे खेत में भली प्रकार बोए हुए बीज के सदृश्य महाफल होता है। किंतु तूने वैसा नहीं किया है। इसलिए तेरा दान महाफल नहीं हुआ। दान ही सब कुछ नहीं है। जिसे
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