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दर्पण बनो
और दिन भी है। और उनके सत्य में स्त्री भी है, और पुरुष भी है। और उनके सत्य में जीवन भी है, और मृत्यु भी है। उन्होंने सत्य को इतनी समग्रता में देखा, उतनी ही समग्रता में कहा भी।
तो वे दोनों बात कहते हैं। वे कहते हैं : किसको शिष्य बनाऊं? और रोज शिष्य
बनाते हैं!
बुद्ध को समझने के लिए तुम्हें दोनों तरह के गुरुओं से ऊपर उठना होगा। वे. जो कहते हैं गुरु के बिना ज्ञान हो ही नहीं सकता, उनसे ऊपर उठना होगा। और जो कहते हैं गुरु के संग ज्ञान हो ही नहीं सकता, उनसे भी ऊपर उठना होगा, तो तुम बुद्ध को समझ पाओगे। बुद्ध की बात इतनी पूरी है, इसीलिए इतनी विपरीत, असंगत मालूम होती है।
तुम सोचते हो कि पहले तो उन्होंने कहा कि स्वयं जानकर गुरु किसको कहूं? किसको सिखाऊं? और फिर अंत में यह भी कहा मरते वक्तः आत्म दीपो भव, अपने दीपक स्वयं बनो!
इन दोनों में कोई विरोध नहीं है। शिष्य बनाए। लेकिन शिष्य बनाकर यही कहाः आत्म दीपो भव। यही उनका शिष्यत्व है। जो बुद्ध को स्वीकार करता है, वह यही स्वीकार कर रहा है कि कोई गुरु नहीं है, किसी की शरण नहीं जाना। सत्य बाहर से नहीं मिलने वाला। बुद्ध से भी नहीं मिलने वाला।
बुद्ध का बड़ा प्रसिद्ध वचन है कि अगर कहीं रास्ते पर मैं मिल जाऊं, तो मुझे तत्क्षण मार डालना। ऐसी अदभुत बात किसी ने नहीं कही है। अगर मैं रास्ते पर कहीं मिल जाऊं, अगर तुम्हारी समाधि के मार्ग पर कहीं बीच में खड़ा हो जाऊं, तो मुझे हटा डालना; मार डालना। मेरे कारण रुकना मत। मेरा मोह तुममें पैदा न हो। तुम मुझे मत पकड़ लेना। तुम मुझसे भी मुक्त हो जाना। अगर बीच में कभी मैं आड़े आने लगू; तुम्हारी समाधि में अगर मैं बाधा डालने लगू; अगर तुम्हारे मन में मेरे प्रति राग पैदा होने लगे, मोह पैदा होने लगे, तो तुम मुझे भी छोड़ देना। क्योंकि राग और मोह सब छोड़ने हैं। तुम मुझे भी क्षमा मत करना; तुम मुझे भी दो टुकड़े कर देना।
ऐसी हिम्मत की बात, जिसे परिपूर्ण सत्य दिखा हो, और जिसने परिपूर्ण सत्य जैसा है, वैसा ही कहा हो-उससे ही संभव हो सकती है।
तो मैं तुम्हें बुद्ध की बात संक्षिप्त में कह दूं। बुद्ध कहते हैं : न कोई गुरु है, न कोई शिष्य है। और मैं तुम्हारा गुरु और तुम मेरे शिष्य! मेरे पास सिखाने को कुछ भी नहीं है; और आओ, मैं तुम्हें सिखाऊं। गुरु की कोई जरूरत नहीं है; और आओ, मेरा सहारा ले लो।
तुम अड़चन में पड़ जाओगे। तुम्हारी बुद्धि एकदम अस्तव्यस्त हो जाएगी कि अब क्या करें! इस आदमी के साथ क्या करें?
लेकिन यही पूर्ण सत्य है। यह सर्वांगीण सत्य है। क्योंकि दोनों बातें इसमें आ
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