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एस धम्मो सनंतनो
तो तुम आशा के लिए नए क्षेत्र खोज लिए, बस । फिर तुमने तिनके बना लिए। फिर तुम इन तिनकों से उलझ गए। फिर तुमने कागज की नावें चला दीं। अब फिर तुम सोचने लगे ः अब पहुंचे, तब पहुंचे। फिर कागज की नावें डूबेंगी, फिर निराशा होगी।
जिसने आशा छोड़ दी, उसकी निराशा भी गयी। इस सत्य को देखो। इस सत्य को खूब ध्यान करो। जिसकी आशा गयी, उसकी निराशा गयी। जिसने सुख छोड़ा, उसके दुख गए। जिसने सफलता छोड़ी, उसकी असफलता गयी। जिसने मान छोड़ा, उसका अपमान गया। जिसने जीवन छोड़ा, उसकी मृत्यु गयी ।
जीवन को पकड़ो, तो मौत आती है। जितने जोर से पकड़ो, उतने जोर से आती है। सफलता के लिए दौड़ो, असफलता हाथ लगती है। बड़ा मजा है ! और तुम इसे देखते ही नहीं, तो तुम दौड़ते ही चले जाते हो, और असफलता बढ़ती चली जाती I और तुम सोचते हो : एक न एक दिन तो सफलता मिलेगी। उसी एक न एक दिन की आशा में असफलता का अंबार लगता चला जाता है।
सफलता कभी किसी को यहां न मिली है, न मिल सकती है। असफल तो हारते ही हैं; जिनको तुम सफल कहते हो, वे और बुरी तरह हारते हैं।
तुमने देखा, जिसको धन मिल जाता है, उसकी हार देखी ? जिसको धन नहीं मिलता, उसकी हार कुछ भी नहीं है— उस आदमी के मुकाबले, जिसको धन मिल जाता है। क्योंकि जिसको धन नहीं मिला, उसकी आशा अभी शेष रहती है कि कमा लूंगा। भिखमंगे से भिखमंगा भी आशा रखता है। भिखमंगे से भिखमंगा भी रोज अपने पैसे गिनता है। रोज जमीन में गड़ाता है। अब जो बहुत पढ़े-लिखे भिखमंगे हैं, वे तो बैंक में भी जमा करवाते हैं !
मैं एक भिखमंगे को जानता था, जो मरा तो सत्रह हजार रुपए बैंक में छोड़
कर मरा ।
तो भिखमंगे भी आशा से भरे हैं। लेकिन जिसको सब मिल जाता है, धन पूरा मिल जाता है, जितना सोचा था, उतना मिल जाता है, उसकी तुमने असफलता देखी? उसके भीतर एकदम निर्धनता छा जाती है। वह देखता है : धन का तो अंबार लग गया, और मैं जैसा गरीब था, वैसा का वैसा गरीब - वस्तुतः और भी गरीब हो गया। क्योंकि यह धन की तुलना में अब भीतर की निर्धनता और खलती है।
यह आकस्मिक नहीं है कि बुद्ध सम्राट के बेटे थे और छोड़कर चले गए। तुमने कभी भिखमंगे के बेटे को छोड़कर जाते देखा ? तुमने कोई कहानी सुनी है कि भिखमंगे के बेटे ने सब भिखमंगापन छोड़ दिया और संन्यासी हो गया ! तुमने ऐसी कोई कहानी सुनी है ? ऐसा होता ही नहीं। क्योंकि भिखमंगे का बेटा छोड़ ही क्या सकता है ! छोड़ ही कैसे सकता है? अभी तो उसे असफलता मिली ही नहीं । सफलता ही नहीं मिली, तो असफलता कैसे मिले !
बुद्ध ने छोड़ा; राजा के बेटे हैं। महावीर ने छोड़ा; राजा के बेटे हैं। जैनों के
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