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एस धम्मो सनंतनो हो गया। अच्छा होता, तुम न देते। अच्छा होता, तुम मुंह फेरकर चले जाते। अच्छा होता, तुम थोड़े कठोर होते। लेकिन अगर तुमने यह चाहा कि भिखमंगा तुम्हारा अनुग्रह माने, तो चूक हो गयी; तो दान का धोखा हुआ, दान नहीं हुआ।
दान देने की क्षमता और बांटने की कला है। जब कोई किसी को देता है, तो बहुत ही प्रसादपूर्ण होना चाहिए देना। इतना प्रसादपूर्ण होना चाहिए कि जिसे तुमने दिया है, वह आह्लादित हो; जिसे तुमने दिया है, वह प्रफुल्लित हो—दीन न हो जाए। ___तुम देकर किसी को दीन कर दो, तो भूल हो गयी। तुम्हारे देने से कोई समृद्ध हो, ऊपर उठे। तुम्हारे देने के कारण तुम्हारे समतुल हो जाए। तुम जब किसी को दो, तो इस तरह देना कि जैसे उसने लेकर तुम पर अनुग्रह किया है। यह देने की कला है। तुमने अनुग्रह किया, ऐसा नहीं। ___इसलिए इस देश में हम दान भी देते हैं और दक्षिणा भी। दक्षिणा का मतलब वही होता है। दुनिया के किसी कोने में दक्षिणा का रिवाज नहीं है। दान तो सारी दुनिया में है, लेकिन दक्षिणा बिलकुल भारतीय बात है। __यह दक्षिणा क्या है? तुमने किसी को कुछ दिया-यह दान हुआ। फिर इस दान को उसने स्वीकार कर लिया-इसका धन्यवाद भी दोगे या नहीं। वह दक्षिणा है। वह तुम्हारा अनुग्रह का भाव है कि मैं धन्यभागी हुआ कि आपने, मैंने जो कुछ छोटा-मोटा दिया, फूल तो नहीं था, फूल की पाखुड़ी थी, फिर भी आपने स्वीकार कर लिया-मैं धन्यभागी हूं। आप इनकार भी कर सकते थे। आप कह देतेः रखो अपनी फूल की पाखुड़ी। मुझे फूल चाहिए। तुम्हारा इनकार मुझे तोड़ जाता। तुमने मुझे तोड़ा नहीं। तुम्हारी बड़ी कृपा है, अनुकंपा है। तुम्हारी करुणा है।
___ यह बड़ी अपूर्व बात है दक्षिणा। यह भारत की अपनी अनूठी खोज है। और इसमें सारी कला छिपी है दान की। इसका मतलब यह हुआ कि देने वाला अनुगृहीत है लेने वाले का। क्यों? ऐसा क्यों होना चाहिए?
साधारण गणित तो यही कहेगा कि जिसको मिला है, वह अनुगृहीत हो। लेकिन हमने कुछ और गहरा गणित खोजा। हमने कहा : जिसने दिया है, वह अनुगृहीत हो। क्यों? क्योंकि जिसने दिया है, उसे बहुत गुना मिलेगा।
जिसने लिया है, उसका तो लेना समाप्त हो गया। जिसने दिया है, उसने बहुत पाने का उपाय कर लिया। जिसने लिया है, उसका तो कोई आगे का द्वार नहीं खुलता। जिसने दिया है, वह बहुत पाने का मालिक हो गया, हकदार हो गया। तो धन्यवाद कौन करे?
धन्यवाद वही करे, जिसने दिया है। अगर यह गरीब इनकार कर देता, तो ये द्वार स्वर्ग के बंद हो जाते। इस गरीब ने तुम्हारे स्वर्ग के द्वार खोल दिए। तुम इसे धन्यवाद दो। यह देने की कला है।
तो दान है : देने की क्षमता, देने की कला, और देने का आनंद।
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