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धर्म का सार-बांटना
देते समय तुम आनंदित होने चाहिए। कभी क्रोध से मत देना। कभी भय से मत देना। कभी लोभ से मत देना। कभी प्रतिष्ठा के मोह में मत देना। ये सब गलत देने हैं। ये सब विषाक्त हैं। जब दो, तो आनंद भाव से देना। देना इसलिए कि मेरे पास इतना है कि मैं करूं भी क्या! मैं न दूं, तो क्या करूं! देने का सहज आनंद ही कारण हो, बस।
तुमने जीसस की कहानी सुनीः एक अमीर बागवान ने कुछ मजदूर सुबह काम पर बुलाए। अंगूर पक गए थे और तोड़ने थे। फिर कुछ मजदूर दोपहर बुलाए। क्योंकि अंगूर शाम तक टूट न पाएंगे। फिर कुछ मजदूर सांझ को भी बुलाए। जब सूरज ढल रहा था, तब भी कुछ लोग आए। फिर तो सूरज ढल गया। सब को मजदूरी बांटी। सब को बराबर मजदूरी बांट दी।
जीसस यह कहानी बहत बार कहते थे।
स्वभावतः सुबह से जो दिनभर काम किए थे; भर दुपहरी जो जुते रहे थे धूप में; पसीना-पसीना हुए थे; सूरज ऊगते आए थे और सूरज डूबते जा रहे थे। न भोजन करने गए थे, न एक क्षण को हटे थे काम से—उनको भी उतना ही दिया! तो वे जरा नाराज हुए। उन्होंने कहाः यह अन्याय है! और जो लोग दोपहर आए, उनको भी उतना! उनको आधा मिलना चाहिए। और जो अभी-अभी आए हैं, जिन्होंने काम किया ही नहीं कुछ, उनको भी उतना! इनको तो कुछ भी नहीं मिलना चाहिए।
वह अमीर हंसने लगा, और उसने कहाः मैं तुम से यह पूछता हूं कि तुमने जितना काम किया, उतने के दाम तुम्हें मिले या नहीं? उन्होंने कहाः नहीं, हमें उतने के दाम मिले; थोड़े ज्यादा भी मिले। वह सवाल नहीं है। लेकिन जो दोपहर को आए थे इनको, और जो सांझ को आए इनको?
उस अमीर ने कहाः धन मेरा है और मेरे पास बहुत है। अगर मैं बांटना चाहूं, तो तुम्हें कुछ एतराज है? मैं अगर नदी में फेंकना चाहं, तो तुम्हें कुछ एतराज है? यह मैं मेरे पास अधिक है, इसलिए दे रहा हूं। इन्होंने काम नहीं किया, मेरे पास भी आंखं है। कोई दोपहर आया, कोई सांझ आया; काम क्या करेंगे ये सांझ को आए हुए लोग! लेकिन मेरे पास जरूरत से ज्यादा है, इसलिए दे रहा हूं।
यह आनंद के भाव से देना है। __ जो तुम्हारे पास जरूरत से ज्यादा हो, उसी को देने में मजा हो सकता है। जिस संबंध में तुम अभी खुद ही कंजूस हो, खुद ही पकड़े बैठे हो, जो अभी तुम्हें लगता है कम है, वह तुम कैसे दोगे? दोगे भी तो किसी और कारण से दोगे। उसमें हेतु आ जाएगा। और जहां हेतु आया, मोटिव आया, वहां दान मर गया।
दान की आत्मा है अहेतुकी-भाव-कि बिना किसी कारण के दे रहे हैं। देने के शुद्ध आनंद से दे रहे हैं। ऐसा जो देना सीख लेता है, वह सम्राट हो जाता है।
सम्राट, कितना तुम्हारे पास है, इससे नहीं होता कोई। सम्राट, तुम देने में कितने
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