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धर्म का सार-बांटना
नहीं है। लेकिन और हजार बातें उठी—कि जिसकी मैं चोरी करने जा रहा हूं, इसके पास जरूरत से ज्यादा पहले ही से है। इससे लेने में हर्जा क्या? शायद मैं एक तरह का साम्यवाद फैला रहा हूं; चोरी नहीं कर रहा हूं। इसका खुद का कहां है? दूसरों से छीनकर बैठा है। यह खुद चोर है। इससे ले लेने में हर्ज नहीं है।
फिर मेरी देखो: पत्नी बीमार है, और बच्चे को दूध भी नहीं मिलता। पत्नी की बीमारी, पत्नी को बचाना है। पत्नी को दवा नहीं है, बच्चे को दूध नहीं है। ये दो जीवन बचाने के लिए अगर थोड़ी सी चोरी की, तो इसमें पाप कैसे हो सकता है? दो जीवन बचा रहा हूं।
फिर भीतर वह सोचता है कि आज जरूरत है, तो चोरी कर लेता है। जब मेरे पास होगा, दान कर दूंगा। सब ठीक हो जाएगा। गंगा स्नान कर आऊंगा। मंदिर में पुण्य कर दूंगा। और अगर चोरी ठीक से हाथ लग गयी, तो इसमें से कुछ-एक नारियल-हनुमानजी को चढ़ा आऊंगा! गरीबों को बांट दूंगा कुछ इसमें से। __उसके मनोभाव! वह अपने मनोभाव देखता है। उसके मनोभाव अच्छे-अच्छे बनाता है। उन अच्छे मनोभावों की बड़ी श्रेणी में वह चोरी का छोटा सा कृत्य बिलकुल दब जाता है। उसे इसमें कुछ खास बात नहीं दिखायी पड़ती। अपने ही मनोभावों को गूंथकर वह चोरी करने चला जाता है। जैसे कि पुण्य करने जा रहा है, जैसे कि कोई बड़ा महाकृत्य करने जा रहा है, जैसे दुनिया की सेवा करने जा रहा है! __ तुम्हें दिखायी पड़ता है उसका चोरी का कृत्य, तुम कहते हो, पापी है! और तब वह कहेगा : तुम मुझे समझ नहीं पा रहे!
तुम्हें कृत्य दिखता है, उसे अपने मनोभाव दिखते हैं। और यही हालत तुम्हारी है। तुम्हें अपने कृत्य नहीं दिखते, और अपने मनोभाव दिखते हैं। इसलिए दुनिया में कोई किसी को समझता हुआ मालूम नहीं पड़ता।
हिटलर ने लाखों यहूदी मार डाले। उसको यही खयाल था कि इनको मारने से दुनिया का हित होगा। वह दुनिया के हित के लिए कर रहा था, कल्याण के लिए कर रहा था! स्टैलिन ने लाखों लोग रूस में मार डाले-साम्यवाद आएगा! दुनिया में सुख आएगा!
न तो हिटलर के मारने से यहदियों को दुनिया में कोई सुख आया। और न स्टैलिन के लाखों लोगों को मार डालने से दुनिया में कोई साम्यवाद आया। फिर वही माओ ने किया। फिर दुनिया में सभी यही करते हैं। मगर करने वाला यह सोचता है कि मेरे भाव! वे भाव उसको ही दिखायी पड़ते हैं, किसी और को दिखायी नहीं पड़ते; और बड़ी भूल-चूक हो जाती है।
एक झूठा लतीफा। ___ मेरे दो संन्यासी, विजयानंद और विनोद, एक बस में सफर कर रहे थे और बीच में एक बड़ी अपूर्व महिला–टुनटुन बैठी थी। अब टुनटुन बीच में बैठी हो, तो सीट
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