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धर्म का सार-बांटना
है, वह बांझ हो जाता है। वह सब अर्थों में बांझ हो जाता है। उसके जीवन में फूल लगते ही नहीं। संतति तो फूल है। जैसे वृक्ष में फूल लगते, फल लगते। लेकिन अगर वृक्ष में रसधार बहनी बंद हो जाए, तो फिर फूल भी नहीं लगेंगे, फल भी नहीं लगेंगे। संतति तो फल और फूल हैं तुम्हारे जीवन में। तुम्हारे प्रेम की धारा बहती रहे, तो ही लग सकते हैं। ___ इसके पीछे बड़ा मनोवैज्ञानिक कारण है। जितना ज्यादा धनी, उतना ही प्रेम में दीन हो जाता है। अक्सर तुम गरीबों को प्रेम से भर हुआ पाओगे; अमीरों को प्रेम से रिक्त पाओगे। यह आकस्मिक नहीं है। बात उलटी है।
तुम सोचते होः गरीब आदमी प्रेमी है। असल बात यह है कि प्रेमी आदमी गरीब रह जाता है। बात उलटी है। तुम सोचते होः अमीरों में प्रेम क्यों नहीं? तुम समझे ही नहीं। प्रेम ही होता, तो वे अमीर कैसे होते! अमीर होना कठिन हो जाता। प्रेम को तो मारकर चलना पड़ा। प्रेम को तो काट देना पड़ा। प्रेम को तो गड़ा देना पड़ा जमीन में। जिस दिन उन्होंने अमीर होना चाहा, जिस दिन अमीर होने की आकांक्षा जगी, उसी दिन प्रेम की हत्या हो गयी। प्रेम की लाश पर ही अमीरी के महल खड़े हो सकते हैं, नहीं तो नहीं खड़े हो सकते। प्रेम से कीमत चुकानी पड़ती है। _ और प्रेम तुम्हारी आत्मा की सुगंध है। आत्मा की सुगंध खो जाती है और तुम्हारी देह धन से घिर जाती है। तुम्हारे पास जड़ वस्तुएं इकट्ठी हो जाती हैं, और तुम्हारा जीवन-स्रोत सूखता चला जाता है।
इसलिए अमीर से ज्यादा गरीब आदमी तुम न पाओगे। उसकी गरीबी भीतरी है। उसके भीतर सब सूख गया। उसके भीतर कोई रस नहीं बहता अब। उसका जीवन बिलकुल मरुस्थल जैसा है। वहां कोई हरियाली नहीं है। कोई पक्षी गीत नहीं गाते। कोई मोर नहीं नाचते। कोई बांसुरी नहीं बजती। कोई रास नहीं होता। सूख गयी इस जीवन चेतना में ही संतति के फल लगने कठिन हो जाते हैं।
श्रावस्ती के एक अपुत्रक श्रेष्ठी के मर जाने के बाद...। और स्वभावतः, कोई बेटा नहीं था उसका। और मर गया, तो सारा धन राजा के घर चला जाएगा।
कौशल नरेश ने सात दिन तक उसके धन को गाड़ियों में ढुलवाकर राजमहल में मंगवाया। इन सात दिनों तक धन ढुलवाने में वह इस तरह उलझा कि भगवान के पास एक दिन भी न जा सका।
अब यह जरा मजा देखना! यही कौशल नरेश जिज्ञासा से भरता है कि यह धनी आदमी है! इतना धन था! फिर भी न कभी ठीक से पहना, न कभी ठीक से खाया, न कभी ठीक रथों में चला! यह धनी आदमी, बुद्ध इसके पास ही विहार करते, कभी सत्संग को नहीं गया! इस धन में से कुछ बुद्ध के विराट काम में लगा देता, यह भी नहीं किया। और अब मर गया; और अब सब यहीं पड़ा रह गया!
यह दूसरे के संबंध में तो सोच रहा है, अपने संबंध में नहीं सोच रहा है। यह
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