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एस धम्मो सनंतनो
बैसाखियां लेकर चल रहे हो!
यहां तो काम है यही कि तुम्हारी बैसाखियां छीन ली जाएं। बैसाखियां जब पहली दफे छीनी जाती हैं, तो आदमी गिर ही पड़ेगा। वह भी मुझे पता है। क्योंकि जिंदगी हो गयी बैसाखियों पर चलते। कोई ने गीता की बैसाखी ली है। किसी ने कुरान की, किसी ने बाइबिल की, किसी ने कोई और बैसाखी ले रखी है। सब ने अपनी-अपनी बैसाखियां ले रखी हैं। सब अपनी-अपनी बैसाखियों पर लटके हैं! भूल ही गए कि अपने पास पैर भी हैं!
जैसे बच्चे पैदा हों, तभी से बैसाखियां पकड़ा दो, ऐसा हुआ है। सभी को बैसाखियां पकड़ा दी गयीं। बच्चा पैदा हुआ, हिंदू बना दिया गया; मुसलमान बना दिया गया; ईसाई बना दिया गया। बच्चा इधर पैदा हुआ कि जल्दी से बैसाखी पकड़ाते हैं हम। हम उसको चलने नहीं देते अपने पैर पर। हम उसे धर्म को स्वयं नहीं खोजने देते। हम उधार, झूठा धर्म दे देते हैं।
सब धर्म, जो दूसरा देता है, झूठा होता है। अपने से खोजा गया सच होता है। निजता से उभरा हुआ सच होता है। स्वयं के भीतर जो पकता है, वही.सच होता है। __इसलिए तो तुम झूठे हिंदू, झूठे मुसलमान, झूठे सिक्ख, झूठे ईसाई, झूठे जैन देखोगे। ये सब झूठे हैं। इनका कोई कसूर नहीं है। इनका कसूर यही है कि इन्होंने बैसाखियों को स्वीकार कर लिया। इनको बैसाखियां पकड़ा दी गयीं।
तुम जरा किसी बच्चे के साथ यह प्रयोग करके देखो। जैसे ही बच्चा पैदा हो, जल्दी से छोटी सी बैसाखियां उसे पकड़ा दो। पहले बैसाखियों से खेलने दो, ताकि उनसे परिचित हो जाए। फिर जब थोड़ा घसिटने लगे, तब बैसाखियों पर सम्हाल दो। फिर धीरे-धीरे उसको बताओ कि इन्हीं पर चलना चाहिए। यही हमारा कुलधर्म है! हम सदा बैसाखियों पर चले हैं। रघुकुल रीति सदा चली आयी! यह हमारे बाप-दादे भी ऐसे चले; उनके बाप-दादे भी ऐसे चले; तुम भी ऐसे ही चलना। इससे कभी इधर-उधर मत जाना। ये बैसाखियां हमारी प्रतिष्ठा हैं। और बैसाखियों पर ढंग से चलने का नाम ही चलना है। और बैसाखियों पर जो अपने को प्रसादपूर्वक सम्हाल लेता है, वही कुशल है, वही निपुण है। ऐसी बातें सिखाओ।
तो बच्चा बेचारा तुम्हें देखता ही है बैसाखियों पर चलते। उसे खयाल भी नहीं आएगा कि बिना बैसाखियों के कोई चल सकता है। मां भी चलती है; पिता भी चलते हैं; बैसाखियों पर भाई भी चलते हैं। वह भी चलेगा। उसके पैर पंगु हो जाएंगे। उसे याद ही न आएगी कभी कि मैं पैर लेकर पैदा हुआ था।
और फिर अगर एक दिन अचानक कोई बैसाखी छीन ले, तो क्या तुम सोचते हो, एकदम चल पाएगा? नहीं; गिर जाएगा। मगर उसी गिरने से उठना है। बैसाखियां अगर छीन ही ली जाएं, तो आज नहीं कल घिसटेगा; जैसा घिसटा होता बचपन में, वह चालीस साल, पचास साल बाद घिसटेगा। मगर वह शुभ है घिसटना।
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