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दर्पण बनो
तुम कहो : चलो, हम रुके जाते हैं ! तुम कहो कि ठीक! बुद्ध छह वर्ष के बाद रुके; हम अभी रुके जाते हैं । तुम्हें नहीं मिल जाएगा रुकने से । क्योंकि तुम्हारे रुकने में और बुद्ध के रुकने में एक बुनियादी फर्क रहेगा ।
बुद्ध जानकर रुके कि दौड़-दौंड़कर नहीं मिलता। तुम बिना जाने, होशियारी से रुक गए कि चलो, उनको बिना दौड़े मिला; हम भी बैठ जाएंगे बगल में ही । हम भी खोज लें एक बोधिवृक्ष । बोधिवृक्ष बहुत हैं। जहां-जहां बड़ के वृक्ष हैं— कहीं भी बैठ जाओ। बोधिवृक्ष के नीचे हम भी बैठ जाएं! हम को भी मिल जाएगा ! सुबह आंख खोलकर देखोगे कि अब आखिरी तारा डूब रहा है, अब अपना तारा भीतर कब उगे ?
कुछ नहीं उगेगा। थोड़ी-बहुत देर बैठकर लगेगा कि अब नाश्ते का वक्त हुआ । अब चलें ब्लू डायमंड! अब आज तो गया दिन ऐसे ही । बुद्धत्व नहीं मिला। और भूख बहुत जोर से लगी है, और रातभर सो भी नहीं पाए। और बोधिवृक्ष... समाधि वगैर कहां! मच्छड़ ही मच्छड़ !
तुम खयाल रखना, बोधिवृक्षों के नीचे समाधि ही नहीं है; मच्छड़ भी हैं। रातभर सो भी न पाए। कहां की झंझट में पड़ गए ! कम से कम मच्छरदानी तो आते। अपने घर शांति से तो सोते थे । और रातभर डर भी लगेगा कि कहीं कोई जंगली जानवर इत्यादि न आ जाए। कोई चोर-लुटेरा न आ जाए ! और रातभर तुम कई बार आंख खोल-खोलकर देखोगे कि अभी तक बुद्धत्व नहीं मिला। कब मिलता है देखें ?
शक भी होगा कई बार कि अरे ! पागल हुए हो। ऐसे कहीं मिलता है ? ऐसे बैठे-ठाले मिलता होता, तो सभी को मिल गया होता। बैठे-ठाले कहीं बुद्धत्व मिलता है? अरे उठो! कुछ घर चलो। अपने काम में लगो । ऐसे समय मत गंवाओ।
मन में विचार आएंगे कि किसी फिल्म को ही देख लेते; कि किसी संगीत की मंडली में ही चले गए होते। कुछ नहीं होता तो टी. वी. ही देख लिए होते। यह रात ऐसे ही गयी ! पछताओगे बहुत ।
तो दूसरी बात तुमसे कह दूं कि वह छह वर्ष के दौड़ने का परिणाम आया। छह वर्ष के दौड़ने से सत्य नहीं मिला; लेकिन छह वर्ष के दौड़ने से बैठने की क्षमता मिली। इसलिए दोनों बातें मैं एक साथ कहना चाहता हूं।
छह वर्ष बुद्ध न दौड़े होते, तो रुकने की कला न आती । दौड़ने वाला ही रुकना जानता है। दौड़ने की असफलता ही रुकने की पात्रता बनती है।
और फिर छह वर्ष ... । यह मत सोचना कि छह वर्ष का भी कोई संबंध है । कि चलो, छह वर्ष हम भी दौड़ें। यह भी इस पर निर्भर करेगा कि तुम कितनी प्रगाढ़ता से दौड़े; कितनी परिपूर्णता से दौड़े। बुद्ध की त्वरा चाहिए, तो छह वर्ष में हो गया; नहीं तो साठ वर्ष में भी नहीं होगा ।
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