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एस धम्मो सनंतनो
रहे। तो कृष्णमूर्ति के शिष्यों में एक भी उपलब्ध हुआ हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ता । वे सब घुटने के बल ही सरक रहे हैं। यह एक भ्रांति ।
दूसरी भ्रांति हैं : मुक्तानंद जैसे लोग, जोर से पकड़ लेते हैं। फिर छोड़ते ही नहीं। वे कहते हैं: कहां जा रहे हो ? अब न छोडूंगा। अब एक दफे पकड़ लिया तो पकड़ लिया ! तो तुम जवान भी हो जाते और उनका हाथ तुम्हारे ऊपर जंजीर बन जाता है। और वे तुम्हारे भीतर एक अपराध-भाव पैदा करते हैं कि अगर तुमने मुझे छोड़ा, तो यह महापाप होगा; यह धोखा होगा; यह दगा होगा ।
एक सिंधी महिला ने मुझे आकर कहा - किसी सिंधी गुरु के पास जाती होगी — कि जब से आपके पास आने लगी हूं, गुरु बहुत नाराज हैं। दादा गुरु का नाम होगा। कहने लगी : दादा कहते हैं कि तुमने वैसा ही धोखा किया है, जैसे कोई स्त्री अपने पति के साथ करे ।
यह तो हद्द हो गयी ! शिष्य किसी और के पास चला जाए, तो यह वैसा ही व्यभिचार हो गया, जैसे कोई पत्नी किसी और पति को खोज ले । जैसे पत्नी को पतिव्रता होना चाहिए; ऐसे शिष्य को गुरुव्रता होना चाहिए। वे नाराज हैं। दादा बड़े नाराज हैं।
मैंने कहा: तू निकल आयी उनके चक्कर से अच्छा हुआ। ये दादा खतरनाक हैं। ये तेरी गरदन दबा देते । ये तुझे मार ही डालते।
बुद्ध के वचन इन अर्थों में अपूर्व हैं । बुद्ध उतने दूर तक सहारा देते हैं, जितने दूर तक लगता है कि तुम बिना सहारे न चल सकोगे। जैसे ही समझ में आया कि तुम अब बिना सहारे चलने लगोगे, वे हाथ अलग कर लेते हैं।
इसलिए बुद्ध ने दीक्षा भी दी और यह भी कहते रहे कि दीक्षा की कोई जरूरत नहीं है। शिष्य भी बनाए और यह भी निरंतर कहते रहे कि किसी को शिष्य होने की कोई जरूरत नहीं है। यह बड़ी महिमापूर्ण स्थिति है। इसे समझो। इसे समझो, तो ही तुम मेरे पास होने का अर्थ भी समझ पाओगे ।
यही मेरी प्रक्रिया है। मैं चाहता हूं कि मैं तुम्हारे लिए निमित्त से ज्यादा न होऊं, इशारे से ज्यादा नहीं । इशारे से ज्यादा हुआ कि खतरा हो गया। मील का पत्थर जैसे इशारा करता है, तीर बना होता है कि आगे जाओ, दिल्ली पचास मील दूर है। मील के पत्थर को छाती से लगाकर नहीं बैठ जाना है।
मैं भी चाहता हूं : मेरा इशारा समझो और आगे बढ़ो, और पीछे लौट-लौटकर भी मत देखना । यह मत कहना कि जिस मील के पत्थर ने आगे की तरफ इशारा किया, अब उससे हम निष्ठा कैसे अलग करें! अब तो हम इसी को छाती से लगाकर बैठेंगे। या अगर हमें जाना ही है, तो हम इस पत्थर को उखाड़कर अपने कंधे पर रखकर चलेंगे।
दोनों हालत में तुम पंगु हो जाओगे । उस पत्थर को कंधे पर ढोओगे, यात्रा
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