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एस धम्मो सनंतनो
श्रद्धा है? किस शास्त्र पर तुम्हारा भरोसा है? तुम किन विधियों के अनुयायी हो?
तब शास्ता ने उससे कहाः मेरे आचार्य या उपाध्याय नहीं हैं। मैं किसी धर्म को नहीं मानता। मेरी किसी शास्त्र में श्रद्धा नहीं है। मैंने जो पाया है, अपने से पाया है। ___ यह बुद्ध का परम संदेश है। क्योंकि जो मिलना है, वह तुम्हारे भीतर पड़ा है। कोई दूसरा थोड़े ही देने वाला है। हस्तांतरण नहीं होता सत्य का। तुम्हारे भीतर पड़ा है। गुरु अगर कुछ करता है, तो इतना ही कि तुम्हारे भीतर जो पड़ा है, उसको ही पुकारता है। उसे तुम स्वयं भी पुकार सकते हो।
गुरु अनिवार्य नहीं है बुद्ध के मार्ग पर। तुम स्वयं न पुकार सको, तो उसकी जरूरत है। तुम स्वयं अपने को असमर्थ पाओ, तो उसकी जरूरत है। अन्यथा तुम स्वयं भी पुकार सकते हो। क्योंकि खदान तुम्हारे भीतर है। तुम स्वयं भी खोज सकते हो। गुरु तुम्हें धन देगा नहीं, सिर्फ इतना ही कह देगा कि इस तरह मैंने अपने भीतर खोदा, इसी तरह तुम भी अपने भीतर खोद लो।
मगर जो है, तुम्हारे भीतर है। जो है, तुम्हारे स्वभाव में छिपा है। जो है, उसे तुम लेकर ही आए हो, वह तुम्हारा जन्मसिद्ध, स्वभावसिद्ध अधिकार है।
इसलिए बुद्ध ने कहा कि मेरा कोई गुरु नहीं है। मैंने गुरुओं के द्वारा नहीं पाया। मेरा कोई आचार्य नहीं, मेरा कोई उपाध्याय नहीं। ऐसा नहीं कि मैं गुरुओं के पास नहीं रहा। रहा, लेकिन वहां मुझे कुछ मिला नहीं। और जब मिला, तब मैं किसी गुरु के पास नहीं था।
और जो मैंने पाया है, वह कुछ ऐसा है कि अब मैं तुमसे कह सकता हूं कि उसे किसी और के पास लेने जाने की जरूरत नहीं है। अपने भीतर ही चले जाओ, तो मिल जाए। शास्त्रों में नहीं है, स्वयं में है। शब्दों और सिद्धांतों में नहीं है, तुम्हारी चेतना में बसा है। तुम मंदिर हो, परमात्मा तुम्हारे भीतर बैठा है। 'मैं सभी को परास्त करने वाला हूं।' बुद्ध ने कहा, मेरे जितने शत्रु थे, वे सब गए। 'मैं सब जानता हूं।' जो जानने योग्य है, वह मुझे दिखायी पड़ गया है।
'मैं सभी धर्मों-तृष्णा इत्यादि-से मुक्त हो गया हूं। अलिप्त हो गया हूं। सर्व त्यागी हूं।'
सर्वत्यागी का अर्थ होता है, मैंने त्याग को भी त्याग दिया है। मैं सब धर्मों से मुक्त हो गया हूं। मैंने जगत की तृष्णा तो छोड़ ही दी है; मोक्ष की तृष्णा भी छोड़ दी है। मेरा कोई उद्देश्य ही नहीं है। मैं अब बिलकुल निरुद्देश्य हूं, जैसे फूल खिलता है निरुद्देश्य। जैसे सुबह सूरज निकलता है निरुद्देश्य, ऐसा मैं निरुद्देश्य हूं। मेरा कोई लक्ष्य नहीं है। सब लक्ष्य गए। सब उद्देश्य गए। सब भविष्य गया। मेरी कोई वासना नहीं है—मोक्ष की भी नहीं है।
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