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एस धम्मो सनंतनो
बची है, उसे मत लड़ाओ वासना से । उसे ध्यान बनाओ।
लेकिन राहुल को वासना से नहीं डिगाया जा सकता। इसलिए यह कहानी अनूठी है। चूंकि बारह-तेरह साल के ऋषि-मुनि होते ही नहीं, इसलिए कहानी अनूठी है। तुमने जो कहानियां पढ़ी हैं ऋषि-मुनियों की, वे सब वृद्ध ऋषि-मुनियों की हैं। वहां उर्वशी आती और नाचती; और श्रृंगार करके आती । और सब उस तरह का काम होता है। यह राहुल छोटा सा बच्चा है।
मार ने क्या किया? यह अर्हत हुआ जा रहा है ! वह एक बड़ा हाथी बनकर आया है। छोटा बच्चा है, उसके लिए बड़ा हाथी ! इतना ही नहीं, सूंड़ में राहुल की गरदन फंसा ली, और भयंकर चीत्कार की।
कहानी को तथ्य मत समझ लेना। ऐसा भीतर हुआ होगा। हो सकता है, सपने में हुआ हो । एक दुखस्वप्न हुआ हो। यह मन ही है, जो यह रूप रखता है। लेकिन यह चीत्कार की आवाज, हो सकता है राहुल के मुंह से निकल गयी हो ।
तुम्हारे कभी-कभी मुंह से निकल जाती है— दुखस्वप्न में । छाती पर कोई आकर राक्षस बैठ गया और चीत्कार निकल जाती है। या पहाड़ से गिरा दिए गए और चीत्कार निकल जाती है । या कोई तुम्हारी छाती में छुरा भोंक रहा है और चीत्कार निकल जाती है।
ऐसी चीत्कार छोटे से राहुल से निकल गयी होगी । बुद्ध ने गंधकुटी के भीतर से ही मार को जानकर ऐसे शब्द कहे - मार ! तेरे जैसे लाखों भी मेरे पुत्र को भय नहीं उत्पन्न कर सकते ।
यहां एक बात और खयाल रख लेना। बुद्ध राहुल को ही मेरा पुत्र कहते हैं, ऐसा नहीं । जितने भिक्षु हैं, सभी को मेरा पुत्र कहते हैं। राहुल तो पुत्र भी है। लेकिन भिक्षु सभी, बुद्ध के पुत्र हैं - बुद्ध संतति ।
पिता है। एक बहुत नए अर्थों में पिता है। पिता से तो शरीर को जन्म मिलता है, गुरु से आत्मा को । पिता से तो जो शरीर मिला है, वह आज नहीं कल मौत ले जाएगी। गुरु से जो आत्मा मिलती है, उसे फिर कोई नहीं ले जा सकता। पिता से तो संसार मिलता है; गुरु से संन्यास । संसार क्षणभंगुर है, संन्यास शाश्वत है।
बुद्ध ने कहा : मार ! मेरे बेटे को तेरे जैसे लाखों भी भय उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। मेरा पुत्र निर्भीक, तृष्णारहित, महाबलवान और महाबुद्धिमान है। यह कहकर इन गाथाओं को कहा :
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'जिस मनुष्य ने अर्हत का पद पा लिया...।
अर्हत का अर्थ होता है : जिसके शत्रु समाप्त हो गए - अंरि हत। अरि यानी शत्रु, हत यानी नष्ट हो गए।
जैनों में यही शब्द दूसरे रूप में है— अरिहंत - जिसने अपने शत्रुओं को मार डाला। दोनों में लेकिन थोड़ा सा फर्क है । अर्हत का अर्थ होता है, जिसके शत्रु मर
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