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एस धम्मो सनंतनो
हम चलते हैं; चलो!
गुरु ने सोचा कि कुछ भटकाएंगे जंगलों में। कुछ दिन में अपने आप थक जाएगा। मगर वह भी एक था। वह महागुरु था। वह थके ही नहीं! वह तो रोज सुबह उठकर कहे कि गुरुदेव! कितनी देर और लगेगी? अब कहां तक और चलना है? उसने गुरु को थका मारा।
छह साल पहाड़ों में घूमते रहे। गुरु को मार ही डाला उसने। गुरु को भी पता हो तो कहीं पहुंचा दे। पहुंचाए कहां? चक्कर काटते रहे पहाड़ों में कि भई, अब आता, अब आता!
एक दिन गुरु ने कहा, यह तो हद्द हो गयी! मेरी जिंदगी खराब कर देगा। अपनी तो कर ही रहा है, यह मेरी भी जिंदगी खराब कर देगा! उसने उसके हाथ जोड़े और कहाः महाराज! मुझे रास्ता पता था; मगर जब से तुम्हारा सत्संग हुआ, सब भूल गया। अब यह परमात्मा का मुझे भी मिलना नहीं हो रहा है। अब तुम मुझे बख्शो। मेरे सत्संग में तुम तो नहीं पहुंच सकते, तुम्हारे सत्संग में मैं भटक गया! अब आप क्षमा करो। अब आप किसी और गुरु का पीछा पकड़ो।
ऐसे ही बुद्ध थे। जिसने जो कहा, पूरा किया। हर गुरु ने कहा कि अब आप और कहीं जाएं किसी और को...। क्योंकि इनको देखकर दूसरे शिष्य भागने लगें न! कि भई, इतनी मेहनत करके जब इस आदमी को नहीं मिला, तो हम तो इतनी मेहनत कर भी नहीं सकते। हमको तो कैसे मिलने वाला है? ___ अंततः बुद्ध ने सारे गुरु छोड़ दिए। अंततः बुद्ध ने सारे पथ और सारे मार्ग छोड़ दिए। सारी विधियां छोड़ दीं। जब उन्होंने सब छोड़ दिया-तब मिला। अपूर्व घटना घटी।
एक रात उन्होंने निर्णय ही कर लिया कि अब मुझे खोजना ही नहीं है। खोज की वासना भी छोड़ दी। सत्य को पाने की वासना भी तो वासना ही है, वह भी छूट गयी। उस रात सो गए वृक्ष के तले। कोई चिंता नहीं। कहीं जाना नहीं। कुछ पाना नहीं-न धन, न ध्यान; न पद, न परमात्मा-कुछ पाना ही नहीं।
चित्त एकदम विलुप्त हो गया। क्योंकि चित्त जीता है पाने की आकांक्षा से। चित्त का प्राण ही पाने में है। कुछ पा लूं, कुछ मिल जाए। महत्वाकांक्षा चित्त की आत्मा है।
उस क्षण कोई महत्वाकांक्षा न थी। उस सुबह जब बुद्ध की आंखें खुलीं, आखिरी तारा डूबता था रात का, और उसके डूबते-डूबते ही उनका भीतर का तारा ऊग आया। हो गया। मगर यह स्वयं से हुआ। . ये जो पंचवर्गीय भिक्षु हैं, ये पांच भिक्षु बुद्ध के शिष्य थे। जब बुद्ध एक-एक चावल भोजन करते थे, तब ये पांच भिक्षु उनके शिष्य थे। वे बुद्ध को बड़ा गुरु मानते थे। क्योंकि इतना महातपस्वी! हड्डियां मात्र रह गयी थीं शरीर में। चमड़ी सूख गयी थी। सुंदर देह एकदम काली पड़ गयी थी। अस्थि-पंजर रह गए थे। तब वे पांच
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