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एस धम्मो सनंतनो
न मिले। लेकिन इस डर से कि अगर राहुल के और पास गए, उसका मुंह देखने की कोशिश की, कहीं यशोधरा जग न जाए! जग जाए, तो रोएगी, चीखेगी, चिल्लाएगी! जाने न देगी। इसलिए चुपचाप द्वार से ही लौट गए थे।
उस बेटे को राहुल का नाम भी बुद्ध ने इसीलिए दिया था— राहु-केतु के अर्थों में। इसलिए दिया था कि बुद्ध घर छोड़ने जा रहे थे, तब यह बेटा पैदा हुआ। सोचते थे कि कब छोड़ दूं, कब छोड़ दूं, तब यह बेटा पैदा हुआ। इस बेटे का प्रबल आकर्षण, और मन में हजार शंकाओं-कुशंकाओं का जमघट लग गया।
मेरे घर बेटा आया है और मैं छोड़कर भाग रहा हूं-यह उचित है छोड़कर भागना? जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व...। इस बेटे के जन्म में मेरा उतना ही हाथ है, जितना यशोधरा का, और मैं छोड़कर भाग जा रहा है। इस असहाय स्त्री पर अकेला बोझ छोड़कर भागा जा रहा हूं! यह उचित है या नहीं?
ये सारी शंकाएं उठने लगी थीं, इसलिए उसको नाम राहुल दिया था कि मैं किसी तरह मुक्त होने के करीब था कि तू राहु की तरह मेरे गले को फांसने आ गया!
फिर बारह वर्षों बाद बुद्ध घर लौटे थे-बुद्धत्व को पाकर—तब.राहुल बारह वर्ष का था। यशोधरा बहुत नाराज थी। स्वाभाविक। मानिनी स्त्री थी, इसलिए सीधे तो उसने कुछ भी न कहा। लेकिन तीखा व्यंग्य किया। परोक्ष व्यंग्य किया।
जब बुद्ध घर पहुंचे, तो उसने अपने बेटे राहुल को कहा कि बेटा, ये तुम्हारे पिता हैं! तू जब एक दिन का था, तब तुझे छोड़कर भाग गए थे। ये भगोड़े हैं। यही तेरे पिता हैं! तू बार-बार मुझसे पूछता था कि मेरे पिता कौन हैं? ये सज्जन, जो आकर खड़े हो गए हैं, यही तेरे पिता हैं। इनसे तू मांग ले अपनी वसीयत। ये तेरे पिता हैं। फिर पता नहीं मिलना हो, न मिलना हो। इनसे मांग ले हाथ फैलाकर-कि इस संसार में जीने के लिए मेरी कुछ वसीयत?
उसने तो व्यंग्य किया था। व्यंग्य महंगा पड़ गया।
बुद्ध ने आनंद से कहा : आनंद! मेरा भिक्षापात्र कहां है? क्योंकि मेरे पास और तो देने को कुछ भी नहीं है। एक भिक्षापात्र है, वह मैं अपने बेटे को दे देता हूं। लेकिन भिक्षापात्र तो भिक्षु को दिया जा सकता है!
भिक्षापात्र देकर बुद्ध ने कहाः बेटा, तू भिक्षु हो गया। तू संन्यस्त हो गया। मेरे पास संसार की कोई संपदा नहीं है, संन्यास की संपदा है, तू उसका मालिक हो गया।
महंगा पड़ गया व्यंग्य। राहुल भी बेटा तो बुद्ध का था; उसने ना-नुच भी न की। उसने चरण छुए और बुद्ध के पीछे हो लिया। यशोधरा तो बहुत घबड़ायी। पति तो गया ही गया, अब बेटा भी गया। तब कोई और उपाय न देख उसने बुद्ध से कहा: फिर मुझे भी भिक्षुणी बना लें। अब मैं किसके लिए रहूंगी? ऐसे राहुल के कारण यशोधरा भी भिक्षुणी बनी।
राहुल अदभुत बेटा था। बारह साल के बच्चे से यह आशा करनी! पर बुद्ध का
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