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बुद्धत्व का कमल उसी समझ में चोरी चली जाएगी और दान फलित होगा । और दान का अहंकार भी नहीं आएगा। और मैं चोरी नहीं करता, इसलिए कुछ विशिष्ट हूं—ऐसी अकड़ भी नहीं आएगी। धर्म आंखें खोलने की कला है।
तो पहली तो बात, मैं कोई आदेश नहीं देता ।
दूसरी बात : तुम पूछते हो, 'आपका संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं।' यह संदेश खतरनाक है। इसे पहुंचाने में झंझट तो आएगी, अड़चन तो आएगी। विरोध तो होगा। इसलिए अगर तुम विरोध से डरते हो, तो भूल जाओ यह बात ।
लेकिन विरोध से डरना क्या ? विरोध चुनौती है। और चुनौती में आदमी के प्राण उज्ज्वल होते हैं, निखार आता है। अगर तुम्हारे जीवन में कोई चुनौती नहीं है, तुम मुर्दा और नपुंसक रह जाओगे। चुनौती को चूको ही मत। जहां चुनौती आती हो, उसको झेलो। हर चुनौती तुम्हारी तलवार पर धार रखेगी। हर चुनौती तुम्हें बलशाली बनाएगी ।
ऐसा हुआ। एक बार एक किसान भगवान की प्रार्थना - प्रार्थना करते-करते इतना कुशल हो गया प्रार्थना में कि भगवान को अवतरित होना पड़ा। उन्होंने कहा कि तुझे मांगना क्या है ! तू मांगता तो कभी कुछ नहीं । किए जाता है प्रार्थना !
उसने कहा : अब आप आ गए; अब मांगे लेता हूं। बात यह है कि मुझे ऐसा शक है कि आपको खेती-बाड़ी नहीं आती! दुनिया बनायी होगी आपने भला, मगर खेती-बाड़ी का आपको कोई अनुभव नहीं है । जब जरूरत होती है पानी की, तब धूप! जब धूप की जरूरत होती है, तब पानी ! जब किसी तरह फसल खड़े होने को हो जाती है, तो अंधड़, ओले, तुषार । आपको बिलकुल अकल नहीं है । यही कहने के लिए इतने दिन से प्रार्थना करता था। एक बार मुझे मौका दो, तो मैं आपको दिखलाऊं कि खेती-बाड़ी कैसे की जाती है !
पुरानी कहानी है; तब तक परमात्मा इतना समझदार नहीं हुआ था । वह राजी हो गया। उसने कहा : चलो, ठीक है। इस वर्ष तू जो चाहेगा, वही होगा ।
किसान ने जो चाहा, वही हुआ । जब उसने धूप मांगी, धूप आयी । जब उसने पानी मांगा, पानी आया। और स्वभावतः, किसान तो भूलकर भी क्यों मांगता अंधड़, ओले, तुषार । वे तो कुछ आए नहीं ।
खेत बड़े होने लगे। ऊंचे उठने लगे पौधे । ऐसे जैसे कभी नहीं उठे थे। सिर के पार होने लगे ! किसान ने कहा: अब ! अब दिखलाऊंगा कि देखो, क्या गजब की फसल हो रही है !
पौधे तो बड़े-बड़े हो गए। फसल पकने का मौका भी आ गया। लेकिन उनमें गेहूं नहीं पके। पोचे! सिर्फ खोल ! भीतर गेहूं नहीं। वह बड़ा हैरान हुआ। वह बड़ी तकलीफ में पड़ा कि अब क्या होगा !
तो फिर परमात्मा की प्रार्थना की और कहा कि मुझ से भूल कहां हो गयी ? परमात्मा ने कहा ः बिना ओलों के सत्व पैदा होता ही नहीं । चुनौती चाहिए ।
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