________________
तृष्णा को समझो
है। तुम कंपते हुए, घुटने टेके हुए भगवान की प्रार्थना करते हो !
जरा भीतर झांककर देखना: प्रार्थना में भय के अतिरिक्त कुछ और है ? अगर भय के अतिरिक्त कुछ और नहीं, तो यह प्रार्थना कैसी ! क्योंकि प्रार्थना में भय तो हो ही नहीं सकता। प्रार्थना में तो सिर्फ प्रेम होता है । और जहां प्रेम है, वहां भय नहीं । और जहां भय है, वहां प्रेम नहीं । -
1
महाकाश्यप ने उसके पापों का स्मरण नहीं दिलाया। न तो कहा : देख, एक साधारण सी स्त्री को देखकर दीवाना हो गया ! और शरीर में रखा क्या है पागल ? मल-मूत्र की गठरी है। ऐसा कुछ भी नहीं कहा। यह भी नहीं कहा कि तूने चोरी की ! थोड़ा तो सोच ! किस कुलीन घर से आता है ? संन्यासी रह चुका है। ठीकरों के लिए चोरी करने गया !
नहीं, यह बात ही याद नहीं दिलायी । यह बात याद दिलाने की है ही नहीं । क्योंकि जो बात याद दिलायी जाती है, वह मजबूत हो जाती है। क्योंकि उस पर ध्यान जाता है। ध्यान पोषण है। ध्यान जल सींचना है।
सदगुरु याद दिलाता है तुम्हारे भीतर पड़े हुए शुभ की, तुम्हारे भीतर पड़े हुए परमात्मा को आह्वान करता है। तुम्हारे पाप को विचार में भी नहीं लाता। वह विचारने योग्य नहीं, उपेक्षा के योग्य है । उस पर ध्यान भी देने की जरूरत नहीं है । क्योंकि अगर उस पर ज्यादा ध्यान दोगे, तो ऐसा ही होगा, जैसे कोई अपने घाव को बार-बार उघाड़-उघाड़कर, पट्टी खोल-खोलकर देखे। घाव भरेगा नहीं। जैसे कोई घाव को कुरेद- कुरेदकर देखे कि अभी भरा कि नहीं भरा ? तो कैसे भरेगा? घाव को भूल जाना जरूरी है, तो ही भरता है ।
गुरु ने कहा: पूर्व के उत्पादित ध्यानों का स्मरण करो। गुरु ने कहा : देख, कैसी ऊंचाई पर उड़ा जाता था; कैसे पंख तुझे लग गए थे ! मंजिल बड़े करीब थी । शिखर आया ही आया था। स्वर्ण शिखर परमात्मा के मंदिर के चमकते हुए दिखायी पड़ने लगे थे। याद कर ! उस घड़ी की याद कर !
पूर्व के उत्पादित ध्यानों का स्मरण करो। ध्यान नौका है। ध्यान एकमात्र नौका है : मृत्यु से अमृत की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, असत से सत की ओर। जैसे उपनिषद कहते हैं : असतो मा सदगमय - मुझे असत से सत की ओर ले चलो । मृत्योर्मा अमृतं गमय — मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो । तमसो मा ज्योतिर्गमय — मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
हिंदू प्रार्थना करते हैं परमात्मा से । बुद्ध के जगत में कोई परमात्मा नहीं है । बुद्ध कहते हैं : ध्यान नौका है। प्रार्थना से क्या होगा ? बैठो इस नाव में, और चलो असत सेसत की ओर । आओ इस नाव में, करो यह निमंत्रण स्वीकार, और चलो अंधकार से प्रकाश की ओर। चलो ले चलते हैं तुम्हें । बुद्ध कहते हैं : बनाओ मुझे मांझी अपना । ले चलते हैं तुम्हें उस पार, जहां कोई मृत्यु नहीं ।
83