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बुद्धत्व का कमल
तुमने देखा, जैन मुनि को नमस्कार करो, तो वह हाथ जोड़कर नमस्कार नहीं करता। मुनि कैसे नमस्कार करे गृहस्थ को!
एक सम्मेलन था। आचार्य तुलसी ने बुलाया। मुझे भी भूल से बुला लिया! काफी वर्ष हो गए। मोरारजी भी निमंत्रित थे; तब वे वित्तमंत्री थे।
इसके पहले कि सम्मेलन में सब लोग भाग लें, जो विशिष्ट अतिथि थे दस-पांच, उनको आचार्य तुलसी ने विशेष रूप से अलग मिलने के लिए व्यवस्था की थी। तो मैं भी गया; मोरारजी गए; और भी जो दो-चार लोग थे, वे गए। सब ने नमस्कार किया और आचार्य तुलसी ने तो आशीर्वाद दिया। वे तो नमस्कार कर नहीं सकते।
किसी और को तो अखरा भी नहीं; लेकिन मोरारजी को अखर गया। मोरारजी को यह बात जंची नहीं कि मैं नमस्कार करूं और आप आशीर्वाद दें। उन्होंने तत्क्षण प्रश्न उठा दिया कि क्षमा करिए; लेकिन यह बात शोभा नहीं देती। हमने हाथ जोड़कर नमस्कार किया; आपने नमस्कार का उत्तर नहीं दिया! क्या कारण है इसका? और दूसरा सवाल, उन्होंने कहा, यह भी मैं पूछना चाहता हूं-और यह संगोष्ठी बुलायी है प्रश्नों के लिए, चर्चा करने के लिए, तो चलो इसी से संगोष्ठी शुरू हो—कि आप ऊपर चढ़कर क्यों बैठे हैं और हम सब लोग नीचे बैठे हैं! हां, सभा हो; ठीक है! कोई आदमी ऊंचाई पर बैठे; नहीं तो लोग देख न पाएं। मगर यह तो संगोष्ठी है। दस-बारह लोग तो हैं ही कुल। तो आप नीचे क्यों नहीं बैठे हैं?
संगोष्ठी कैसे चले। वह तो खतम होने के करीब आ गयी शुरू में ही! तुलसी जी बेचैन होने लगे। उत्तर क्या दें! उत्तर है भी क्या! इतनी भी हिम्मत नहीं कि उतर आएं नीचे, कि कहें कि ठीक है यह बात; भूल हो गयी। ऊपर बैठने की कोई जरूरत नहीं थी। छोटी सी बैठक है। नीचे साथ-साथ बैठ जाएंगे। इतनी भी हिम्मत नहीं है कि हाथ जोड़कर नमस्कार कर लें, कि क्षमा करें; भूल हो गयी। इतना ही बोले कि मुनि कैसे गृहस्थ को नमस्कार करे! शास्त्र में वर्जना है : मुनि गृहस्थ को नमस्कार न करे।
मगर यह कोई उत्तर है! मुनि तो विनम्र होना चाहिए। गृहस्थ को नमस्कार भी न कर सके, तो गृहस्थ की महानिंदा हो गयी।
और कहा कि मुनि को ऊपर बैठना चाहिए। तो मोरारजी भाई ने कहा कि आप तो अपने को क्रांतिकारी संत कहलवाते हैं। थोड़ी क्रांति करिए। ये तो बातें कुछ जंचती नहीं कि मुनि को ऊपर बैठना चाहिए!
मैंने देखा, यह तो मामला बिगड़ा ही जाता है। यह तो बातचीत अब कुछ हो नहीं सकती। यह तो विवाद हो गया। मैंने तुलसीजी को कहा कि अगर आप कहें, तो मैं मोरारजी को जवाब दूं।
उन्होंने सोचा : चलो, भार टला। उन्होंने कहा : बड़ी खुशी से आप जवाब दें।
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