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तृष्णा को समझो
बैठे-बैठे कभी तुम संन्यासी हो जाते हो। एक क्षण को सब असार दिखने लगता है। एक क्षण को कुछ सार नहीं दिखता—इस धंधे में, इस गोरखधंधे में, इन ग्राहकों में; इस रुपए इकट्ठे करने में; इस तिजोड़ी के भरने में एक क्षण कुछ भी नहीं दिखायी पड़ता। और कभी-कभी ऐसा हो जाता है। मंदिर में बैठे थे प्रार्थना करने
और दुकानदार हो जाते हो! प्रार्थना तो भूल जाती है, किसी ग्राहक से झंझट करने लगते हो। सोचने लगते हो, मोल-तोल करने लगते हो। ___ मैंने सुना है : एक स्त्री मंदिर जाती थी रोज और मंदिर के पुजारी को कहती थी, कभी मेरे पति को भी समझाओ; वे बड़े अधार्मिक हैं!
अक्सर ऐसा हो जाता है। अगर तुम थोड़ी पूजा-पाठ कर लेते हो, तो तुम समझते हो सारी दुनिया अधार्मिक है, क्योंकि तुम धार्मिक हो गए! तुम अगर कभी प्रवचन सुन आते हो किसी का, तो तुम बड़ी अकड़ से लौटते हो सारी दुनिया की तरफ देखते हुए कि बेचारे! अब गए नरक ये सब। इधर मुझे देखो!
तो वह स्त्री सोचती थी क्योंकि नियम से मंदिर जाती; फूल चढ़ाती; आरती उतारती-तो सोचती थी : पति भ्रष्ट है। पति किसी काम का नहीं है। अज्ञानी है! समझा-बुझाकर एक दिन पुरोहित को ले आयी अपने घर। __पति बगीचे में टहल रहा था। सुबह पांच बजा होगा। पत्नी अपने पूजागृह में घंटी बजाकर पूजा कर रही थी। पुरोहित ने पूछा : आपकी पत्नी ने मुझे निमंत्रण दिया है। वह कहां है? पति ने कहाः अब आप न पूछे तो अच्छा। इस समय वह सब्जी वाली से लड़-झगड़ रही है।
सब्जी वाली से! पांच बजे सुबह! कौन सब्जी वाली पांच बजे सुबह मिल गयी! यहां कोई दिखायी तो पड़ता नहीं, पुजारी ने कहा। तो उसने कहा : यहां नहीं, बाजार में। बहुत झंझट हो रही है। एक-दूसरे की गरदन पकड़ने को जूझी जा रही हैं! ___यह पत्नी अपने पूजागृह में बैठी सुन रही है। वह तो क्रोध से बाहर निकल आयी। उसने कहा कि हद्द हो गयी झूठ की! मैं यहां पूजा कर रही हूं। तुम्हें पता है। और तुम पुजारी से इस तरह की झूठी बातें बोल रहे हो!
उसके पति ने कहाः अब तू सच कह। घंटी तो तू बजा रही थी, वह मुझे भी सुनायी पड़ रही थी, पुजारी को भी सुनायी पड़ रही थी। लेकिन सच तू बता। मैंने जो कहा, वह झूठ है? - पत्नी एक क्षण चौंकी। झूठ तो नहीं था। हाथ में तो घंटी बज रही थी, लेकिन भीतर-भीतर वह चली गयी थी बाजार। आज मेहमान घर आने वाले थे और वह उसी विचार में लगी थी : क्या सब्जी खरीद लाना! क्या नहीं खरीद लाना! कैसे स्वागत करना मेहमानों का! बेटी को देखने आते थे, इसलिए स्वागत की पूरी तैयारी करनी जरूरी थी। और वहां बाजार में, इसी मन के हिसाब में, पहुंच गयी थी दुकान पर सब्जी खरीदने और एक सब्जी वाली बड़े ज्यादा दाम बता रही थी। बात बिगड़
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