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तृष्णा को समझो नहीं उतरा रस्सी से और चरणों में गिर गया। उस गिरने में ही क्रांति घट गयी । ऐसा जो समर्पण कर सकता है - एक क्षण में - बुद्धि को बिना बीच में लाए, उसका हृदय से हृदय का संबंध जुड़ जाता है।
वह बुद्ध का हो गया। बुद्ध उसके हो गए। जब मरा तो अर्हत्व को पाकर मरा ।
अर्हत्व का अर्थ होता है : जिसका ध्यान समाधि बन गया, अर्हत हो गया जो । जिसके सारे शत्रु नष्ट हो गए। काम, क्रोध, मोह, लोभ, तृष्णा—सब समाप्त हो गए। जिसके सब शत्रु समाप्त हो गए, जो सब के पार आ गया। ऐसे व्यक्तित्व को अर्हत्व कहा जाता है। अर्हत परम दशा है।
शास्त्र कहते हैं : वह सच ही परम नट-विद्या को उपलब्ध होकर मरा। बुद्ध ने जो वचन दिया था, वह पूरा किया गया था।
बुद्ध के वचन खाली नहीं जाते हैं। जिनमें हिम्मत है उनके साथ चलने की, वे निश्चित पहुंच जाते हैं।
आज इतना ही।
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