________________
एस धम्मो सनंतनो
'भूत को छोड़ो, भविष्य को छोड़ो और वर्तमान को भी छोड़ो—इस तरह इन्हें छोड़कर संसार के पार हो और मुक्त-मानस होकर तुम फिर जन्म और जरा को नहीं प्राप्त होओगे।'
उग्गसेन मेरे पास आओ, मैं तुम्हें परम कीमिया सिखाऊंगा। पहले हम इस दृश्य को समझें।
राजगृह में प्रतिवर्ष एक विशेष समारोह में नटों के खेल का आयोजन होता था। एक बार जब नटों का खेल हो रहा था, तब राजगृह नगर के श्रेष्ठी का उग्गंसेन नामक पुत्र एक नट-कन्या के खेल को देखकर उस पर मोहित हो उसी से अपना विवाह कर नटों के साथ हो लिया।
आदमी जिससे प्रेम करता है, वैसा ही हो जाता है। प्रेम सावधानी से करना। प्रेम अपने से श्रेष्ठ से करना। अपने से निकृष्ट से प्रेम करोगे, तो वैसे ही हो जाओगे। प्रेम रसायन है। जिससे प्रेम करोगे, वैसे ही हो जाओगे।
तुमने देखाः जो लोग धन को प्रेम करते हैं, उनके चेहरे पर वैसा ही घिसा-घिसापन दिखायी पड़ने लगता है, जैसे घिसे सिक्कों पर दिखायी पड़ता है। जो लोग नोटों को प्रेम करते हैं, उनके चेहरे पर देखा! वैसे ही घिसे-पिटे नोट की हालत हो जाती है। गंदा! न मालूम कितने हाथों से गया! न मालूम कितने-कितने हाथों से उतरा।
जो आदमी जिसको प्रेम करता है, वैसा ही हो जाता है। कहानियां तुमने पढ़ी होंगी कि जब कोई धनी मरता है, तो सांप होकर अपने खजाने पर बैठ जाता है। वह पहले ही से सांप था। तुम मरने के बाद की बात कर रहे हो! वह पहले ही से सांप बना बैठा था फन मारे। उसका कोई और काम नहीं था।
धनी धन को भोगता थोड़े ही है, धन की रक्षा करता है। भोगने की क्षमता ही खो जाती है! भोगने के लिए तो धन को छोड़ने की कला चाहिए।
दो फकीर एक नदी के पास आकर रुके। उनमें एक फकीर सदा कहता था कि धन में कुछ सार नहीं। धन बिलकुल बेकार है। और कभी धन पास नहीं रखता था।
और दूसरा फकीर कहता था ः वक्त पर जरूरत पड़ सकती है। कभी बीमारी है, कभी झंझट है, कभी अड़चन है, कभी यात्रा है, कभी भोजन की जरूरत है। थोड़ा साथ रखना चाहिए। धन काम का है।
दोनों नदी के किनारे आकर रुके। सांझ होने के करीब है। और उस पार जाना जरूरी है। और जो मांझी है, वह कहता है कि एक रुपए से कम नहीं लूंगा। क्योंकि मैं थका-मांदा हूं और यह मैं आखिरी बार जा रहा हूं। फिर अब मैं दुबारा आऊंगा नहीं। दिनभर हो गया मेहनत करते-करते।
तो जिस फकीर के पास रुपए थे, उसने एक रुपया दिया। वे दोनों फकीर नदी पार कर लिए। जब नाव से उतरे तो जिसके पास रुपया था, उसने कहाः अब कहो!
94