________________
तृष्णा को समझो
लेकिन तलवार व्यर्थ हो गयी। शस्त्र उसे काट न सके। उसे मैंने बदल दिया है। क्योंकि वह बात अवैज्ञानिक मालूम होती है। नहीं तो जीसस को सूली कैसे लगती? नहीं तो सुकरात को जहर कैसे काम करता? खुद बुद्ध विषाक्त भोजन से मरे। महावीर पेचिश की बीमारी से मरे। रामकृष्ण कैंसर से मरे। रमण भी कैंसर से मरे। मंसूर की गरदन कैसे काटी जा सकती थी?
नहीं; वह बात योग्य नहीं है। इसलिए मैंने उसे बदला है। मैं फिर भी कहता है: जल्लाद उसे वधस्थल पर ले जाकर मारना चाहे, तो मार न सके। वह ऐसा ज्योतिर्मय हो उठा था—इसलिए। इसलिए नहीं कि उन्होंने तलवारें चलायीं और तलवारें काम नहीं की। तलवारें किसको देखती हैं! तलवारें अंधी हैं। तलवारें जड़ हैं। तलवारें कैसी रुक सकती हैं! तलवारें कब रुकीं! किसके लिए रुकीं! तलवारों पर इतना भरोसा मत करो। मैं चेतना पर भरोसा करता हूं, इसलिए इतना फर्क किया।
मैं कहता हूं: जल्लाद नहीं मार सके। तलवारें! तलवारें तो काट डालतीं। जल्लाद नहीं मार सके। जल्लाद चैतन्य हैं। जल्लादों के भीतर भी तो परमात्मा उतना ही छिपा है, जितना किसी और के भीतर। और अगर चोर एक क्षण में रूपांतरित हो सकता है, तो जल्लाद क्यों नहीं रूपांतरित हो सकते?
इस चोर की क्रांति उन्होंने अपनी आंखों से देखी। इन्होंने यह घटना अपनी आंख से देखी। एक क्षण पहले यही आदमी चिंताओं से भरा हुआ, आंसुओं से दबा हुआ, डरता, कंपता हुआ चल रहा था। और फिर महाकाश्यप का मिलन और इस
आदमी का रूपांतरण देखा, मेटामारफोसिस देखी। देखा ः यह कुछ का कुछ हो गया। यह और का और हो गया। उसके बाद जैसे इसके हाथ पर जंजीरें नहीं थीं। उसके बाद जैसे कोई मौत नहीं थी। यह मस्ती से चलने लगा। इसमें एक सगंध फटने लगी। यह जल्लादों ने देखा अपनी आंख से—कि कुछ हो गया। उन्होंने भी गौर से देखा होगा : क्या हुआ? उनकी भी आंखें टिक गयी होंगी इसकी ज्योति पर।
तुमने देखा ः जब तुम चिंता से भरे होते हो, तो तुम्हारे पास एक कालिमा होती है; तुम्हारे चेहरे के पास एक काला मंडल होता है। और जब तुम आनंद से भरे होते हो, तो तुम्हारे पास एक रोशन प्रभामंडल होता है, एक रोशनी होती है।
और यह तो बड़ी क्रांति थी। यह अपने पुराने ध्यान को अचानक उपलब्ध हो गया। ये बीच के दिन आए कि नहीं, ऐसे समाप्त हो गए। यह फिर उसी ऊंचाई पर उड़ने लगा। जल्लादों ने अपनी आंख से देखा था : इसके पंख लग गए, अचानक पंख लग गए। इसकी ज्योतिर्मय दशा को देखकर वे इसे न मार सके। ____ मैं तलवारों पर भरोसा नहीं करता। मेरा भरोसा आदमी पर है। इसलिए इतना फर्क करता हूं कहानी में। वह बात मुझे नहीं जमती कि उन्होंने मारा और तलवारें काम नहीं आयीं।
हालांकि कृष्ण कहते हैं : नैनं छिंदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः। मुझे शस्त्र