________________
धम्मपद का पुनर्जन्म पड़े हैं, वहां चलेगा। क्योंकि दुख ! तपस्वी है ! तपश्चर्या करनी है ! अगर वृक्ष में छाया है, तो वहां न बैठेगा। धूप में खड़ा रहेगा। पास कंबल है, ओढ़कर सो जाता। तो नदी में खड़ा है ! ठंड सह रहा है ! यह मूढ़ता ने ढंग बदल लिया, लेकिन मूढ़ता नहीं गयी ।
न तो दुख पैदा करने की जरूरत है, न सुख खोजने की जरूरत है। दुख इतना काफी हैं। परमात्मा ने जितना जरूरी है, उतना तुम्हें दिया है; उसका उपयोग कर लो। उसको समझ लो। उसी समझ में से तुम्हें सूत्र मिल जाएंगे। उन्हीं सूत्रों से मुक्ति है।
आज इतना ही।
67